नई पुस्तकें >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 2 प्रेमचन्द की कहानियाँ 2प्रेमचंद
|
3 पाठकों को प्रिय 400 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दूसरा भाग
प्रातःकाल पानी का घड़ा लेकर चलती, तब उसका गेहुँआ रंग प्रभात की सुनहली किरणों से कुंदन हो जाता, मानो उषा अपनी सारी सुगंध, सारा विकास और सारा उन्माद लिए मुस्कराती चली जाती हो।
मुलिया मैके से ही जली-भुनी आयी थी, मेरा शौहर छाती फाड़कर काम करे और पन्ना रानी बनी बैठी रहे, उसके लड़के रईसजादे बने घूमें। मुलिया से यह बरदाश्त न होगा। वह किसी की गुलामी न करेगी। अपने लड़के तो अपने ही होते ही नहीं, भाई किसके होते हैं। जब तक पर नहीं निकलते हैं, रग्घू को घेरे हुए हैं। ज्यों ही जरा सयाने हुए, पर झाड़ कर निकल जायँगे। बात भी न पूछेंगे।
एक दिन उसने रग्घू से कहा– तुम्हें इस तरह गुलामी करनी हो, तो करो, मुझसे न होगी।
रग्घू– तो फिर क्या करूँ, तू ही बता? लड़के तो अभी घर का काम करने लायक भी नहीं हैं।
मुलिया– लड़के रावत के हैं, कुछ तुम्हारे नहीं हैं। यही पन्ना है, जो तुम्हें दाने-दाने को तरसाती थी। सब सुन चुकी हूँ। मैं लौंडी बन कर न रहूँगी। रुपये पैसे का मुझे कुछ हिसाब नहीं मिलता। न जाने तुम क्या लाते हो? और वह क्या करती हैं। तुम समझते हो रुपए घर ही में तो हैं; मगर देख लेना, तुम्हें जो एक फूटी कौड़ी भी मिले।
रग्घू– रुपये-पैसे तेरे हाथ में देने लगूँ, तो दुनिया क्या कहेगी यह तो सोच।
मुलिया– दुनिया जो चाहे, कहे। दुनिया के हाथों बिकी नहीं हूँ। देख लेना, भाड़ लीप कर हाथ काला ही रहेगा। फिर तुम अपने भाइयों के लिए मरो, मैं क्यों मरूँ।
रग्घू ने कुछ जवाब न दिया – उसे जिस बात का भय था, वह इतनी जल्द सिर पर आ पड़ी। अब अगर उसने बहुत तथ्यों थंभो किया, तो साल छः महीने और काम चलेगा। बस, आगे यह डोंगा चलता नज़र नहीं आता। बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी।
एक दिन पन्ना ने महुए का सुखावन डाला। बरसात शुरू हो गई थी। बखार में अनाज गीला हो रहा था। पन्ना मुलिया से बोली– बहू, ज़रा देखती रहना, मैं तालाब से नहा आऊँ।
मुलिया ने लापरवाही से कहा– मुझे नींद आ रही है, तुम बैठ कर देखो, एक दिन न नहाओगी तो क्या होगा?
पन्ना ने साड़ी उठा कर रख दी, नहाने न गई। मुलिया का वार खाली गया।
|