कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 3 प्रेमचन्द की कहानियाँ 3प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसरा भाग
भगतराम ने कोई जवाब नहीं दिया।
चौधरी- 'यहाँ किस मुहल्ले में रहती हैं माँ-बेटी ? सारा शहर हमारा छाना पड़ा है, हम यहाँ कोई बीस साल रहे होंगे, क्यों बच्चा की अम्माँ ?'
चौधराइन -'बीस साल से ज्यादा रहे हैं।'
भगतराम- 'उनका घर नखास पर है।'
चौधरी- 'नखास से किस तरफ ?'
भगतराम- 'नखास की सामनेवाली गली में पहला मकान उन्हीं का है। सड़क से दिखाई देता है।
चौधरी- 'पहला मकान तो कोकिला रण्डी का है। गुलाबी रंग से पुता हुआ है न ?'
भगतराम ने झेंपते हुए कहा, 'ज़ी हाँ, वही मकान है !'
चौधरी- 'तो उसमें कोकिला रण्डी नहीं रहती क्या ?'
भगतराम- 'रहती क्यों नहीं। माँ बेटी, दोनों ही तो रहती हैं।'
चौधरी- 'तो क्या कोकिला रण्डी की लड़की से ब्याह करना चाहते हो ? नाक कटवाने पर लगे हो क्या ? बिरादरी में तो कोई पानी पियेगा नहीं।'
चौधराइन- 'लूका लगा दूँगी मुँह में रॉड़ के ! रूप-रंग देखकर के लुभा गये क्या ?'
भगतराम- 'मैं तो इसे अपना भाग्य समझता हूँ कि वह अपनी लड़की की शादी मेरे साथ करने को राजी है। अगर वह आज चाहे, तो किसी बड़े-से-बड़े रईस के घर में शादी कर सकती है।'
चौधरी- 'रईस उससे ब्याह न करेगा रख लेगा। तुम्हें भगवान् समाई दे तो एक नहीं चार रखो। मरदों के लिए कौन रोक है ! लेकिन जो ब्याह के लिए कहो तो ब्याह वही है, जो बिरादरी में हो।'
चौधराइन- 'बहुत पढ़ने से आदमी बौरा जाता है।'
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