कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 3 प्रेमचन्द की कहानियाँ 3प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसरा भाग
‘सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता,
राम के चरन में चित्त लागा।’
महादेव के विषय में भी कितनी ही जन-श्रुतियाँ हैं। उनमें सबसे मान्य यह है कि आत्माराम के समाधिस्थ होने के बाद वह कई संन्यासियों के साथ हिमालय चला गया, और वहाँ से लौट कर न आया। उसका नाम आत्माराम प्रसिद्ध हो गया।
7. आदर्श विरोध
महाशय दयाकृष्ण मेहता के पाँव जमीन पर न पड़ते थे। उनकी वह आकांक्षा पूरी हो गयी थी जो उनके जीवन का मधुर स्वप्न था। उन्हें वह राज्याधिकार मिल गया था जो भारत-निवासियों के लिए जीवन-स्वर्ग है। वाइसराय ने उन्हें अपनी कार्यकारिणी सभा का मेम्बर नियुक्त कर दिया था।
मित्रगण उन्हें बधाइयाँ दे रहे थे। चारों ओर आनंदोत्सव मनाया जा रहा था, कहीं दावतंा होती थीं, कहीं आश्वासन-पत्र दिये जाते थे। वह उनका व्यक्तिगत सम्मान नहीं, राष्ट्रीय सम्मान समझा जाता था। अँगरेज अधिकारी-वर्ग भी उन्हें हाथों-हाथ लिये फिरता था।
महाशय दयाकृष्ण लखनऊ के एक सुविख्यात बैरिस्टर थे। बड़े उदार हृदय, राजनीति में कुशल तथा प्रजाभक्त थे। सदैव सार्वजनिक कार्यों में तल्लीन रहते थे। समस्त देश में शासन का ऐसा निर्भय तत्त्वान्वेषी, ऐसा निःस्पृह समालोचक न था और न प्रजा का ऐसा सूक्ष्मदर्शी, ऐसा विश्वसनीय और ऐसा सहृदय बन्धु।
समाचार-पत्रों में इस नियुक्ति पर खूब टीकाएँ हो रही थीं। एक ओर से आवाज आ रही थी हम गवर्नमेंट को इस चुनाव पर बधाई नहीं दे सकते। दूसरी ओर के लोग कहते थे- यह सरकारी उदारता और प्रजाहित-चिन्ता का सर्वोत्तम प्रमाण है। तीसरा दल भी था, जो दबी जबान से कहता था कि राष्ट्र का एक और स्तम्भ गिर गया।
संध्या का समय था। कैसरपार्क में लिबरल लोगों की ओर से महाशय मेहता को पार्टी दी गयी ! प्रान्त भर के विशिष्ट पुरुष एकत्र थे। भोजन के पश्चात् सभापति ने अपनी वक्तृता में कहा- हमें पूरा विश्वास है कि आपका अधिकार-प्रवेश प्रजा के लिए हितकर होगा, और आपके प्रयत्नों से उन धाराओं में संशोधन हो जायगा, जो हमारे राष्ट्र के जीवन में बाधक हैं।
महाशय मेहता ने उत्तर देते हुए कहा- राष्ट्र के कानून वर्तमान परिस्थितियों के अधीन होते हैं। जब तक परिस्थितियों में परिवर्तन न हो, कानून में सुव्यवस्था की आशा करना भ्रम है।
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