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प्रेमचन्द की कहानियाँ 3

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9764
आईएसबीएन :9781613015018

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसरा भाग


सभा विसर्जित हो गयी। एक दल ने कहा- कितना न्याययुक्त और प्रशंसनीय राजनैतिक विधान है। दूसरा पक्ष बोला- आ गये जाल में। तीसरे दल ने नैराश्यपूर्ण भाव से सिर हिला दिया, पर मुँह से कुछ न कहा।

मि. दयाकृष्ण को दिल्ली आये हुए एक महीना हो गया। फागुन का महीना था। शाम हो रही थी। वे अपने उद्यान में हौज के किनारे एक मखमली आरामकुर्सी पर बैठे थे। मिसेज रामेश्वरी मेहता सामने बैठी हुई पियानो बजाना सीख रही थीं और मिस मनोरमा हौज की मछलियों को बिस्कुट के टुकड़े खिला रही थीं। सहसा उसने पिता से पूछा- यह अभी कौन साहब आये थे।

मेहता- कौंसिल के सैनिक मेम्बर हैं।

मनोरमा- वाइसराय के नीचे यही होंगे?

मेहता- वाइसराय के नीचे तो सभी हैं। वेतन भी सबका बराबर है, लेकिन इनकी योग्यता को कोई नहीं पहुँचता। क्यों राजेश्वरी, तुमने देखा, अँगरेज लोग कितने सज्जन और विनयशील होते हैं।

राजेश्वरी- मैं तो उन्हें विनय की मूर्ति कहती हूँ। इस गुण में भी ये हमसे बढ़े हुए हैं। उनकी पत्नी मुझसे कितने प्रेम से गले मिलीं।

मनोरमा- मेरा तो जी चाहता था, उनके पैरों पर गिर पडूँ।

मेहता- मैंने ऐसे उदार, शिष्ट, निष्कपट और गुणग्राही मनुष्य नहीं देखे। हमारा दया-धर्म कहने ही को है। मुझे इसका बहुत दुःख है कि अब तक क्यों इनसे बदगुमान रहा। सामान्यतः इनसे हम लोगों को जो शिकायतें हैं उनका कारण पारस्परिक सम्मिलन का न होना है। एक दूसरे के स्वभाव और प्रकृति से परिचित नहीं।

राजेश्वरी- एक यूनियन क्लब की बड़ी आवश्यकता है जहाँ दोनों जातियों के लोग सहवास का आनन्द उठावें। मिथ्या-द्वेष-भाव के मिटाने का एकमात्र यही उपाय है !

मेहता- मेरा भी यही विचार है। (घड़ी देख कर) 7 बज रहे हैं, व्यवसाय मंडल के जलसे का समय आ गया। भारत-निवासियों की विचित्र दशा है। ये समझते हैं कि हिंदुस्तानी मेम्बर कौंसिल में आते ही हिंदुस्तान के स्वामी हो जाते हैं और जो चाहें स्वच्छंदता से कर सकते हैं। आशा की जाती है कि वे शासन की प्रचलित नीति को पलट दें, नया आकाश और नया सूर्य बना दें। उन सीमाओं पर विचार नहीं किया जाता है जिनके अंदर मेम्बरों को काम करना पड़ता है।

राजेश्वरी- इनमें उनका दोष नहीं। संसार की यह रीति है कि लोग अपनों से सभी प्रकार की आशा रखते हैं। अब तो कौंसिल के आधे मेम्बर हिंदुस्तानी हैं। क्या उनकी राय का सरकार की नीति पर असर नहीं हो सकता?

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