कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 4 प्रेमचन्द की कहानियाँ 4प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौथा भाग
आबे-हयात से भरे हुए गिलास मेज. पर रखे हुए थे। उनसे निकलने वाली महीन फुहारें हीरों के कणों की तरह चमक रही थीं। सूरज डूब चुका था, इसलिए कमरे में ज्यादा अँधेरा हो गया था, लेकिन घड़े में से चाँदनी की हल्की-सी रोशनी निकलकर डॉक्टर और उनके दोस्तों के चेहरों पर पड़ रही थी। डॉक्टर साहब के चेहरों पर पड़ी झुर्रियाँ और उसकी जर्दी इस रोशनी में और भी प्रकट हो रही थी। तीसरा गिलास पीते ही इन चारों आदमियों की रगों में जवानी की उमंगें लहरें मारने लगीं। अब उनकी जवानी उठान पर था। जोशे-मसर्रत उनके दिलों में नहीं समाता था। शोक-पीड़ा और बेकसी का बुढ़ापा अब उन्हें एक ख्वाब-सा मालूम होता था, जिसे उन्होंने काफी पहले देखा था। उन्हें अब हर एक चीज में एक खास रौनक़ नज़र आने लगी। वह रूहानी शगुफ्तगी, जिससे वे लोग समय से पूर्व वंचित हो चुके थे और जिसके बग़ैर दुनिया के दिलफ़रेब नजारे उन्हें धुँधली तसवीरों की तरह नज़र आते थे, फिर उन पर तमन्नाओं का जादू करने लगीं। उन्हें ऐसा मालूम होता था कि हम एक नई दुनिया के नए अस्तित्व में हैं। सब-के-सब झुककर बोले- ''हम जवान हो गए, हम जवान हो गए!''
यथार्थत: यह ओछे नौजवानों की जमात थी, जिन्हें आयु की माँग ने दीवानगी पर प्रवृत कर दिया था। उनके मनोविनोद का सबसे अजीब पहलू यह था कि उन लोगों को इस वृद्धावस्था और निर्बलता का उपहास उड़ाने की दिली इच्छा हो रही थी, जिससे अभी-अभी उनका छुटकारा हुआ था। वह अपने पुराने तरह के कपड़ों को देखकर खूब क़हक़हे मारकर हँसने लगे। एक साहब ऋतु-परिवर्तन के दर्द से कराहते हुए बूढ़े बाबा की नक़ल करके लँगड़ा-लँगड़ाकर चलने लगे। दूसरे साहब नाक पर ऐनक रखकर जादू की किताब को ग़ौर से पढ़ने का बहाना करने लगे। तीसरे साहब एक आरामकुर्सी पर बैठ गए और डॉक्टर घोष की दृढ़ता की नकल करने लगे, फिर सब-के-सब शोर-शराबा करते हुए कमरे में कूदने-फाँदने लगे। श्रीमती चंचलकुँवर एक दिलरुबाना अंदाज से डॉक्टर साहब के पास आई। उनके गुलाब-से गालों पर एक दिलफ़रेब और शरारत-भरी शोखी थी। डॉक्टर साहब से बोली-- ''प्यारे डॉक्टर, उठ खड़े हो, जरा मेरे साथ नाचो।''
इस पर चारों आदमियों ने यह सोचकर क़हक़हा मारा कि डॉक्टर साहब इस हसीना के पहलू में कैसे मूर्ख मालूम होंगे।
डॉक्टर साहब ने मतानत से कहा- ''मुझे माफ़ कीजिए! में बूढ़ा हूँ गठिए ने नाक में दम कर रखा है। मेरे नाचने के दिन कब के रुखसत हो गए, लेकिन इन तीन नौजवानों में से कोई भी तुम्हारे साथ नाचने के लिए जान दे देगा।''
ठाकुरसिह ने फ़रमाया- ''चंचल, मेरे साथ नाचो।''
बाबू दयाराम बोले- ''नहीं, वह मेरे साथ नाचेगी।''
लाला करोड़ीमल ने कहा- ''वहाँ मैं इनका पुराना आशिक हूँ। पचास साल हुए, इन्होंने मेरे साथ नाचने का वायदा किया था।''
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