कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 4 प्रेमचन्द की कहानियाँ 4प्रेमचंद
|
9 पाठकों को प्रिय 374 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौथा भाग
दिन-भर वह चिन्ता में डूबा पड़ा रहा। शीतला को उसने प्रेम से संतुष्ट करना चाहा था। आज अनुभव हुआ कि नारी का हृदय प्रेम-पाश से नहीं बँधता, कंचन के पाश ही से बँध सकता है। पहर रात जाते-जाते, वह घर से चल खड़ा हुआ। पीछे फिरकर भी न देखा। ज्ञान के आगे हुए विराग में चाहे मोह का संस्कार हो, पर नैराश्य से जागा हुआ विराग अचल होता है। प्रकाश में इधर-उधर की वस्तुओं को देखकर मन विचलित हो सकता है। पर अंधकार में किसका साहस है, जो लीक से जौ भर भी हट सके?
विमल के पास विद्या न थी, कला-कौशल भी न था; उसे केवल अपने परिश्रम और कठिन-त्याग ही का आधार था। वह पहले कलकत्ते गया। वहाँ कुछ दिन तक सेठ की दरबानी करता रहा। वहाँ जो सुन पाया कि रंगून में मजदूरी अच्छी मिलती है, तो रंगून जा पहुँचा, और बंदरगाह पर माल चढ़ाने-उतारने का काम करने लगा।
कुछ तो कठिन श्रम, कुछ खाने-पीने का असंयम और कुछ जलवायु की खराबी के कारण वह बीमार हो गया। शरीर दुर्बल हो गया, मुख की कांति जाती रही; फिर भी उससे ज्यादा मेहनती मजदूर बंदर पर दूसरा न था। और मजदूर मजदूर थे, पर यह मजदूर तपस्वी था। मन में जो कुछ ठान लिया था, उसे पूरा करना ही उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था।
उसने घर को अपना कोई समाचार न भेजा। अपने मन से तर्क किया, घर में कौन मेरा हितू है? गहनों के सामने मुझे कौन पूछता है? उनकी बुद्धि यह रहस्य समझने में असमर्थ थी कि आभूषणों की लालसा रहने पर भी प्रणय का पालन किया जा सकता है। और मजदूर प्रातः काल सेरों मिठाई खाकर जलपान करते, दिन-भर–दम-दम पर–गाँजे, चरस और तम्बाकू के दम लगाते, अवकाश पाते, तो बाजार की सैर करते थे। कितनों ही को शराब का शौक था। पैसों के बदले रुपये कमाते, तो पैसों की जगह रुपये खर्च कर भी डालते थे। किसी की देह पर साबित कपड़े तक नहीं थे। फिर विमल गिनती के दो-चार मजदूरों में से था, जो संयम से रहते थे, जिनके जीवन का उद्देश्य खा पीकर मर जाने के सिवा कुछ और भी था। थोड़े ही दिनों में उनके पास थोड़ी-सी संपत्ति हो गई। धन के साथ और मजदूरों पर दबाव भी बढ़ने लगा। यह प्रायः सभी जानते थे। विमल जाति का कुलीन ठाकुर है। सब ठाकुर ही कहकर उसे पुकारते। संयम और आचार सम्मान-सिद्धि के मंत्र हैं। विमल मजदूरों का नेता और महाजन हो गया।
विमल को रंगून में काम करते-करते तीन वर्ष हो चुके थे। संध्या हो गई थी। वह कई मजदूरों के साथ समुद्र के किनारे बैठा बातें कर रहा था।
एक मजदूर ने कहा– यहाँ की सभी स्त्रियाँ निठुर होती हैं। बेचारा झींगुर दस वर्ष से उस बर्मी स्त्री के साथ रहता था। कोई अपनी ब्याही जोरू से भी इतना प्रेम न करता होगा। उस पर इतना विश्वास करता था कि जो कुछ कमाता, उसके हाथ में रख देता। तीन लड़के थे। अभी कल तक दोनों साथ-साथ खाकर लेटे थे। न कोई लड़ाई न झगड़ा; न बात न चीत; रात को औरत न-जाने कब उठी और न जाने कहाँ चली गई। लड़कों को छोड़ गई। बेचारा झींगुर बैठा रो रहा है। सबसे बड़ी मुश्किल तो छोटे बच्चे की है। अभी कुल छह महीने का है। कैसे जिएगा भगवान् जाने।
|