कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 4 प्रेमचन्द की कहानियाँ 4प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौथा भाग
विमलसिंह ने गंभीर भाव से कहा– गहने बनवाता था कि नहीं?
मजदूर– रुपये-पैसे तो औरत के ही हाथ में थे। गहने बनवाती, तो उसका हाथ कौन पकड़ता?
दूसरे मजदूर ने कहा– गहनों से तो लदी हुई थी। जिधर से निकल जाती थी, छम-छम की आवाज से कान भर जाते थे।
विमल– जब गहने बनवाने पर भी निठुराई की, तो यही कहना पड़ेगा कि यह जाति ही बेवफा होती है।
इतने में एक आदमी आकर विमल से बोला– चौधरी मुझे अभी एक सिपाही मिला था। वह तुम्हारा नाम, गाँव और बाप का नाम पूछ रहा था। कोई बाबू सुरेशसिंह हैं?
विमल ने सशंक होकर कहा– हाँ, है। वह मेरे गाँव के इलाकेदार और बिरादरी के भाई हैं।
आदमी– उन्होंने थाने में कोई नोटिस निकलवाया है कि जो विमलसिंह का पता लगाएगा, उसे 1000 रु. का इनाम मिलेगा।
विमल– तो तुमने सिपाही को सब ठीक-ठाक बता दिया?
आदमी– चौधरी, मैं कोई गँवार हूँ क्या? समझ गया, कुछ दाल में काला है; नहीं तो कोई इतने रुपये क्यों खर्च करता। मैंने कह दिया कि उसका नाम विमलसिंह नहीं, जसोदा पांडे है। बाप का नाम सुक्खू बताया, और घर जिला झाँसी में। पूछने लगा, यहाँ कितने दिन से रहता है? मैंने कहा, कोई दस साल से। तब कुछ सोचकर चला गया। सुरेश बाबू से तुमने कोई अदावत है क्या चौधरी?
विमल– अदावत तो नहीं थी, मगर कौन जाने उनकी नीयत बिगड़ गई हो। मुझ पर कोई अपराध लगाकर मेरी जगह-जमीन पर हाथ बढ़ाना चाहते हों। तुमने बड़ा अच्छा किया कि सिपाही को उड़नघाई बतायी।
आदमी– मुझसे कहता था कि ठीक-ठीक बता दो, तो 50 रु. तुम्हें भी दिला दूँ। मैंने सोचा, आप तो 1000 रु. की गठरी मारेंगे, और मुझे 50 रु. दिलाने को कहता है। फटकार बता दी।
एक मजदूर– मगर जो 200 रु. देने को कहता, तो सब ठीक-ठीक नाम-ठिकाना बता देते, क्यों? धत् तेरे लालची की।
आदमी– (लज्जित होकर) 200 रु. 2000 रु. भी देता, तो न बताते। मुझे ऐसे विश्वासघात करने वाला मत समझो। जब जी चाहे, परख लो।
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