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प्रेमचन्द की कहानियाँ 4

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9765
आईएसबीएन :9781613015025

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौथा भाग


यह कहता हुआ आनन्द उठ खड़ा हुआ और बिना हाथ मिलाये कमरे के बाहर निकल गया। उसके पैर इस तरह लडख़ड़ा रहे थे, कि अब गिरा, अब गिरा।

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7. इज्ज़त का खून

मैंने कहानियों और इतिहासों में तकदीर के उलट फेर की अजीबो-गरीब दास्तानें पढ़ी हैं। शाह को भिखमंगा और भिखमंगें को शाह बनते देखा है तकदीर एक छिपा हुआ भेद हैं। गलियों में टुकड़े चुनती हुई औरतें सोने के सिंहासन पर बैठ गई और वह ऐश्वर्य के मतवाले जिनके इशारे पर तकदीर भी सिर झुकाती थी, आन की शान में चील कौओं का शिकार बन गये हैं। पर मेरे सर पर जो कुछ बीती उसकी नजीर कहीं नहीं मिलती आह उन घटानाओं को आज याद करती हूं तो रोगटे खड़े हो जाते हैं। और हैरत होती है कि अब तक मैं क्यों और क्योंकर जिन्दा हूँ। सौन्दर्य लालसाओं का स्रोत हैं। मेरे दिल में क्या लालसाएं न थीं पर आह, निष्ठुर भाग्य के हाथों में मिटीं। मैं क्या जानती थी कि वह आदमी जो मेरी एक-एक अदा पर कुर्बान होता था एक दिन मुझे इस तरह जलील और बर्बाद करेगा। आज तीन साल हुए जब मैंने इस घर में कदम रक्खा उस वक्त यह एक हरा भरा चमन था। मैं इस चमन की बुलबुल थी, हवा में उड़ती थी, डालियों पर चहकती थी, फूलों पर सोती थी। सईद मेरा था। मैं सईद की थी। इस संगमरमर के हौज के किनारे हम मुहब्बत के पासे खेलते थे।

तुम मेरी जान हो।

मैं उनसे कहती थी- तुम मेरे दिलदार हो।

हमारी जायदाद लम्बी चौड़ी थी। जमाने की कोई फ्रिक, जिन्दगी का कोई गम न था। हमारे लिए जिन्दगी सशरीर आनन्द, एक अनन्त चाह और बहार का तिलिस्म थी, जिसमें मुरादें खिलती थीं और खुशियाँ हंसती थीं। जमाना हमारी इच्छाओं पर चलने वाला था। आसमान हमारी भलाई चाहता था। और तकदीर हमारी साथी थी।

एक दिन सईद ने आकर कहा-- मेरी जान, मैं तुमसे एक विनती करने आया हूँ। देखना, इन मुस्कराते हुए होंठों पर इनकार का हर्फ़ न आए। मैं चाहता हूँ कि अपनी सारी मिलकियत, सारी जायदाद तुम्हारे नाम चढ़वा दूँ, मेरे लिए तुम्हारी मुहब्बत काफ़ी है। यही मेरे लिए सबसे बड़ी नेमत है मैं अपनी हकीकत को मिटा देना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे दरवाज़े का फकीर बन करके रहूँ। तुम मेरी नूरजहाँ बन जाओ; मैं तुम्हारा सलीम बनूंगा, और तुम्हारी मूंगे जैसी हथेली के प्यालों पर उम्र बसर करूंगा।

मेरी आँखें भर आयी। खुशिंयाँ चोटी पर पहुँचकर आँसू की बूंद बन गयीं।

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