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प्रेमचन्द की कहानियाँ 7

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9768
आईएसबीएन :9781613015056

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सातवाँ भाग


कानूनी - 'हल्लो मिसेज बोस ! आप खूब आयीं, कहिए, किधर की सैर हो रही है? अबकी तो 'आलोक' में आपकी कविता बड़ी सुन्दर थी। मैं तो पढ़कर मस्त हो गया। इस नन्हे-से ह्रदय में इतने भाव कहाँ से आ जाते हैं, मुझे आश्चर्य होता है। शब्द-विन्यास की तो आप रानी हैं। ऐसे-ऐसे चोट करने वाले भाव आपको कैसे सूझ जाते हैं।'

मिसेज बोस- 'दिल जलता है, तो उसमें आप-से-आप धुएँ के बादल निकलते हैं। जब तक स्त्री-समाज पर पुरुषों का अत्याचार रहेगा, ऐसे भावों की कमी न रहेगी।'

कानूनी- 'क्या इधर कोई नयी बात हो गयी?'

बोस- 'रोज ही तो होती रहती है। मेरे लिए डाक्टर बोस की आज्ञा नहीं कि किसी से मिलने जाओ, या कहीं सैर करने जाओ। अबकी कैसी गरमी पड़ी है कि सारा रक्त जल गया, पर मैं पहाड़ों पर न जा सकी। मुझसे यह अत्याचार, यह गुलामी नहीं सही जाती।'

कानूनी- 'डाक्टर बोस खुद भी तो पहाड़ों पर नहीं गये।'

बोस- 'वह न जायँ, उन्हें धन की हाय-हाय पड़ी है। मुझे क्यों अपने साथ लिये मरते हैं? वह क्लब में नहीं जाना चाहते, उनका समय रुपये उगलता है, मुझे क्यों रोकते हैं ! वह खद्दर पहनें, मुझे क्यों अपनी पसन्द के कपड़े पहनने से रोकते हैं ! वह अपनी माता और भाइयों के गुलाम बने रहें, मुझे क्यों उनके साथ रो-रोकर दिन काटने पर मजबूर करते हैं ! मुझसे यह बर्दाश्त नहीं हो सकता। अमेरिका में एक कटुवचन कहने पर सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है। पुरुष जरा देर में घर आया और स्त्री ने तलाक दिया। वह स्वाधीनता का देश है, वहाँ लोगों के विचार स्वाधीन हैं। यह गुलामों का देश है, यहाँ हर एक बात में उसी गुलामी की छाप है। मैं अब डाक्टर बोस के साथ नहीं रह सकती। नाकों दम आ गया। इसका उत्तरदायित्व उन्हीं लोगों पर है जो समाज के नेता और व्यवस्थापक बनते हैं। अगर आप चाहते हैं कि स्त्रियों को गुलाम बनाकर स्वाधीन हो जायँ, तो यह अनहोनी बात है। जब तक तलाक का कानून न जारी होगा, आपका स्वराज्य आकाश-कुसुम ही रहेगा। डाक्टर बोस को आप जानते हैं, धर्म में उनकी कितनी श्रद्धा है ! खब्त कहिए। मुझे धर्म के नाम से घृणा है। इसी धर्म ने स्त्री-जाति को पुरुष की दासी बना दिया है। मेरा बस चले, तो मैं सारे धर्म की पोथियों को उठाकर परनाले में फेंक दूं।'

(मिसेज़ ऐयर का प्रवेश। गोरा रंग, ऊँचा कद, ऊँचा गाउन, गोल हाँड़ी की-सी टोपी, आँखों पर ऐनक, चेहरे पर पाउडर, गालों और ओंठों पर सुर्ख पेंट, रेशमी जुर्राबें और ऊँची एड़ी के जूते।)

कानूनी (हाथ बढ़ाकर)- 'हल्लो मिसेज़ ऐयर ! आप खूब आयीं। कहिए, किधर की सैर हो रही है। 'आलोक' में अबकी आपका लेख अत्यन्त सुन्दर था,मैं तो पढ़कर दंग रह गया।'

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