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प्रेमचन्द की कहानियाँ 8

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9769
आईएसबीएन :9781613015063

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का आठवाँ भाग


गोवर्धन- ''अच्छा, यह भी सही। तो उसने अपने बाप की नाव तुम्हें क्यों दे दी? क्या वह इतना नहीं जानती कि नाव आप-ही-आप अपने ठिकाने पर नहीं चली आती? इसका जवाब दीजिए। उसको अगर नुक़सान का ख्याल नहीं हुआ तो क्या अपने बाप का खौफ़ भी न हुआ?''

डाकू अब चौकन्ना हो गया था। बोला- ''उसने मुझसे कहा कि तुम नाव ले जाओ। मेरे दादा पूछेंगे तो मैं कह दूँगी कि एक पुरानी नाव के खो जाने से अगर किसी बेगुनाह की जान बच जाए तो उसका अफ़सोस नहीं करना चाहिए। मैं तो खुद इसे नहीं लेता था, मगर उसने जबरदस्ती मुझे इस पर बैठा दिया और कहने लगी- ''मेरे दादा ऐसे लालची और खुदगर्ज नहीं हैं। तुम इसे ले जाओ। अगर हो सके तो कल तक किसी विश्वस्त आदमी की मार्फत भेज देना।''

गोवर्धन को अपने सवाल का जवाब तो मिला, मगर दिल को इत्मीनान न हुआ, बोला- ''भाई सुनो! मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं आता। मुझे शक है कि तुमने जरूर शिवराम महतो का घर लूटा और शायद गोरा को मार भी डाला हो तो ताज्जुब नहीं। तुम डाकू हो। तुम्हारा यही पेशा है। इसलिए जब तक उसकी ज़बान पर तुम्हारी बातों की तस्दीक नहीं होगी, मैं हरगिज न मानूँगा। अभी बहुत रात नहीं गई है। दस बजते-बजते हम लोग पहुँच जाएँगे। मुझे गोरा को देखने का एक बहाना हाथ आ जाएगा। दो-चार मीठी-मीठी बातें सुनूँगा। अच्छे-अच्छे खाने खाऊँगा, और सुबह लौट आऊँगा; लेकिन अगर तुमने उसका बाल भी बाँका किया है तो तुम्हारी जान की खैर नहीं। कुत्तों से बोटी-बोटी नुचवा लूँगा।''

यह कहकर गोवर्धन ने अपनी माँ को घर में से बुलाया और चंद लफ्जों में सूरते-हाल बयान करके बोला कि मैं शिवराम महतो के घर तक जाता हूँ। रात को न आऊँगा। किवाड़ बंद कर लेना। बुड्ढी औरत ने मना किया कि रात को मत जा। डाकू है, न जाने क्या पड़े, क्या न पड़े, सुबह को जाना। मगर गोवर्धन ने उसकी तसल्ली की और डाकू को खींचता हुआ घाट तक लाया। उसकी किश्ती खोली और उसे उसमें बैठाकर खुद डाँडा हाथ में ले लिया। पानी की धारा तेज थी और किश्ती को चढ़ाव की तरफ़ जाना था। आहिस्ता-आहिस्ता चलने लगी।

आध घंटे तक इन दो आदमियों में से एक भी न बोला। यकायक डाकू ने पूछा- ''अगर तुम्हें साबित हो जाएगा कि मैंने शिवराम के घर में सेंध नहीं मारी तो मुझे छोड़ दोगे न?''

गोवर्धन- ''मैं अभी कुछ नहीं कह सकता। वह चलकर बताऊँगा।''

डाकू- ''मैं वहाँ तक इस शर्त पर चलूँगा, अगर मैंने शिवराम के घर में सेंध नहीं मारी हो और गोरा को कोई तकलीफ़ न दी हो तो तुम मुझे छोड़ दोगे। वरना मैं यहीं नदी में कूद पडूँगा और तैर के कहीं निकल जाऊँगा। पुलिस के हाथों में मैं नहीं जाना चाहता।''

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