कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 8 प्रेमचन्द की कहानियाँ 8प्रेमचंद
|
10 पाठकों को प्रिय 30 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का आठवाँ भाग
गोवर्धन- ''तुम्हारा इख्तियार है, जी चाहे पानी में कूद पड़ो या अपना सर पटक लो, तुम्हारी खातिर से इतना कहता हूँ कि अगर तुमने वहाँ कोई शरारत नहीं की है तो तुम्हें पुलिस के हवाले न करूँगा।''
डाकू- ''कसम खाओ।''
गोवर्धन- ''तुम्हारे सर की कसम।''
डाकू खामोश हो गया। थोड़ी देर बाद किश्ती किनारे पर लगी और एक आवाज़ सुनाई दी- ''दादा, आज तुमने इतनी देर क्यों की?''
गोवर्धन ने आवाज़ पहचान ली और खुश-खुश डाकू का हाथ पकड़े हुए किश्ती से उतरकर बोला- ''क्या तुम्हारे दादा नहीं आए? आधी रात होने को आई है, क्या तुम यहाँ देर से खड़ी हो?''
गोरा ने गोवर्धन को डाकू के साथ देखा तो मारे शरम के पानी-पानी हो गई। उसने सर झुका लिया और वहाँ से जरा हट गई। गोवर्धन ने देखा कि उसकी साड़ी घुटने से ऊपर तक आ के रह गई है। घूँघट निकालने की कोशिश में उसकी पीठ खुली जाती है। गोरा इस वक्त वहाँ से भाग जाना चाहती थी। अपने मँगेतर के सामने इस बुरी हैसियत से वह कभी नहीं आई थी, मगर गोवर्धन डाकू का हाथ पकड़े हुए गोरा के सामने आया और बोला- ''देखो गोरा! इस वक्त शरमाओ मत। जब महतो आवें तो जी भरकर लजा लेना। तुम इस औरत को जानती हो?''
गोरा ने आहिस्ता से कहा- ''हाँ।''
गोवर्धन- ''इसने तुम्हारे यहाँ से कोई चीज़ चुराई?''
गोरा- ''नहीं।''
गोवर्धन- ''तुमने अपनी साड़ी इसे दे दी?''
गोरा- ''इसने मुझसे छीन ली।''
डाकू ने बोलना चाहा, मगर गोवर्धन ने डाँटकर उसे खामोश कर दिया और फिर गोरा से जिरह करने लगा- ''तुमने अपनी नाव इसे दी?''
|