कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 8 प्रेमचन्द की कहानियाँ 8प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का आठवाँ भाग
पंडित- इससे क्या मतलब ? ऋण तो चुकाना ही पड़ेगा, चाहे खुशी से हो या नाखुशी से।
माया- यह ऋण नहीं है।
पंडित- और क्या है ?
माया- बदला भी नहीं है।
पंडित- फिर क्या है ?
माया- तुम्हारी… निशानी?
पंडित- तो क्या ऋण के लिए कोई दूसरा हार बनवाना पड़ेगा?
माया- नहीं-नहीं, वह हार चोरी नहीं गया था। मैंने झूठ-मूठ शोर मचाया था।
पंडित- सच?
माया- हां, सच कहती हूँ।
पंडित- मेरी कसम?
माया- तुम्हारे चरण छूकर कहती हूँ।
पंडित- तो तमने मुझसे कौशल किया था?
माया- हाँ।
पंडित- तुम्हें मालूम है, तुम्हारे कौशल का मुझे क्या मूल्य देना पड़ा ?
माया- 600 रु० से ऊपर ?
पंडित- बहुत ऊपर ! इसके लिए मुझे अपने आत्मस्वातंत्र्य को बलिदान करना पड़ा।
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