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प्रेमचन्द की कहानियाँ 8

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9769
आईएसबीएन :9781613015063

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का आठवाँ भाग


पंडित- इससे क्या मतलब ? ऋण तो चुकाना ही पड़ेगा, चाहे खुशी से हो या नाखुशी से।

माया- यह ऋण नहीं है।

पंडित- और क्या है ?

माया- बदला भी नहीं है।

पंडित- फिर क्या है ?

माया- तुम्हारी… निशानी?

पंडित- तो क्या ऋण के लिए कोई दूसरा हार बनवाना पड़ेगा?

माया- नहीं-नहीं, वह हार चोरी नहीं गया था। मैंने झूठ-मूठ शोर मचाया था।

पंडित- सच?

माया- हां, सच कहती हूँ।

पंडित- मेरी कसम?

माया- तुम्हारे चरण छूकर कहती हूँ।

पंडित- तो तमने मुझसे कौशल किया था?

माया- हाँ।

पंडित- तुम्हें मालूम है, तुम्हारे कौशल का मुझे क्या मूल्य देना पड़ा ?

माया- 600 रु० से ऊपर ?

पंडित- बहुत ऊपर ! इसके लिए मुझे अपने आत्मस्वातंत्र्य को बलिदान करना पड़ा।

समाप्त

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