कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 9 प्रेमचन्द की कहानियाँ 9प्रेमचंद
|
3 पाठकों को प्रिय 145 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग
ईश्वरदास, ''हाँ, आज सारे दिन दौड़ना पड़ा, थक गया हूँ। कोई जरूरत हो तो पुकार लीजिएगा।''
ईश्वरदास जाने लगा तो माया ने कहा- ''आज यहीं न लेट रहिए! मुझे भी कुछ सर्दी लग रही है। शायद ज्वर आ जाए।''
ईश्वरदास- ''अच्छी बात है, यहीं लेट रहूँगा। कई रातें जागने से आप भी थक गई हैं। आप निश्चिंत होकर सो जाएँ। मुझे कोई जरूरत होगी तो प्रकार लूँगा।'' आधी रात बीत चुकी थी। ईश्वरदास गहरी नींद में था और माया पिस्तौल लिए विचार में मग्न खड़ी थी। उसने समीप आकर ईश्वरदास को ध्यान से देखा। वह गाफ़िल पड़ा हुआ था। उसने अंदर जाकर पिस्तौल उठा लिया और फिर बाहर के कमरे में आई। वह ऐसा निशाना लगाना चाहती थी कि वार खाली ही न जाए, पर उसकी सारी देह काँप रही थी। कमरे की हर चीज़ घूमती हुई मालूम होती थी, मानो सारा आसमान चक्कर खा रहा है। उसने एक कदम और आगे बढ़ाया। वहाँ उसके सिवा और कोई न था। यह जानकर भी वह सशंक नेत्रों से इधर-उधर देख रही थी, मानो दीवारों के भी आँखें हैं। सहसा उसे ऐसा जान पड़ा कि उसके पतिदेव सामने खड़े उसकी ओर तिरस्कार की आँखों से देख रहे हैं, जैसे कह रहे हों- अब क्या खड़ी काँप रही हो? इससे अच्छा और कौन मौक़ा आएगा? माया ने ओंठ को दाँतों के नीचे दबा लिया और ईश्वरदास के सामने आकर खड़ी हो गई।
मगर ईश्वरदास की आँखें खुल गई थीं। माया की आहट पाकर वह चौंका और सिर उठाकर देखा तो खून सर्द हो गया। माया पिस्तौल की नली उसकी तरफ़ किए उसे हिंसा-भाव से देख रही है।
वह चारपाई से उठकर खड़ा हो गया और घबराकर बोला- ''क्या है बहन, यह पिस्तौल क्यों?''
माया ने कठोर स्वर में कहा, ''तुमने मेरे पति को क़त्ल किया है।''
ईश्वरदास का मुख पीला पड़ा गया। बोला, ''मैंने?''
''हाँ, तुमने। तुम्हीं ने लाहौर में मेरे पति को मारा, जब वह एक मुक़दमे की पैरवी करने लाहौर गए थे। क्या तुम इससे इंकार कर सकते हो? मेरे पति की आत्मा ने स्वयं तुम्हारा पता बताया है।''
''तो तुम मि. व्यास की पत्नी हो?''
''हाँ, मैं ही उनकी अभागिनी पत्नी हूँ और तुम मेरा सुहाग लूटने वाले हो। तुमने मेरे ऊपर बड़े एहसान किए हैं। मैं इन्हें न भूलूँगी, लेकिन एहसानों से मेरे दिल की आग नहीं बुझ सकती। यह तुम्हारे रक्त ही से बुझेगी।''
|