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प्रेमचन्द की कहानियाँ 9

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9770
आईएसबीएन :9781613015070

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग


एक बार तिलोत्तमा को थोड़ा ज्वर हो आया। फिर मालूम हुआ मियादी बुखार है। इन दस-बारह दिनों में ईश्वरदास ने जितनी दौड़-धूप की, उतनी शायद खुद बैरिस्टर साहब भी न कर सकते। तिलोत्तमा रात को बहुत बेचैन हो जाती थी, हाथ-पाँव पटकती, बक-झक करती। तब माया घबरा जाती कि कहीं वच्ची को सरसाम न हो रहा हो। उस समय वहाँ ईश्वरदास के सिवा और कौन था, जो आड़े पर काम आता? कभी-कभी तो माया बदहवास होकर खुद दौडी हुई जाती और उसे बुला लाती। उसकी आवाज़ सुनते ही ईश्वरदास भागा चला आता और या तो उसी वक्त वैद्य के पास जाता या तिलोत्तमा को गोद में उठाकर टहलाने ले जाता।

माया को अब ईश्वरदास से कोई परदा न था, कोई झिझक न थी। ऐसे दया के पुतले भी क्या किसी का खून कर सकते हैं? माया का संदेह दिन-दिन बढ़ता जाता था। जब तक उसे निश्चित रूप से न साबित हो जाएगा कि यही खूनी है, वह केवल संदेह पर उसे प्राणदंड न देगी। दे ही नहीं सकती। एक दिन तिलोत्तमा की तबियत कुछ अच्छी थी। वह ज़रा-सा दूध पीकर सो गई थी। ईश्वरदास उसके पास ही एक मोढ़े पर बैठा हुआ उसे पंखा झल रहा था और माया खड़ी उसके मुँह की ओर देख रही थी। उसका जी झुँझला रहा था कि ईश्वरदास से क्यों उसकी जान-पहचान हुई। आज अगर यह साबित भी हो जाए कि यही खूनी है, तो भी क्या वह उसके उपकारों को भूल जाएगी? उस पर उसके हाथ उठ सकेंगे? उसने सशंक नेत्रों से ईश्वरदास की ओर देखा। वह मोढ़े पर लेटा-लेटा झपकियाँ ले रहा था। धीरे-धीरे उसके हाथ से पंखा छूटकर गिर पड़ा, उसका सिर एक ओर झुक गया और उसकी नाक से खुर्राटे की आवाज़ आने लगी। माया को उस समय ईश्वरदास की सूरत देखकर भय-सा लगा। नींद की गोद में सुख और विश्राम का अनुभव करके आदमी का चेहरा, कुछ खिल जाता है, लेकिन ईश्वरदास का चेहरा कठोर, उद्दंड हो गया था।

सहसा वह बर्रा उठा- ''हाय-हाय! मारो मत, मैं सब-कुछ बतला दूँगा.. सब-कुछ...''

एक मिनट तक उसकी सूरत ऐसी बिगड़ी रही, मानो वह कठोर वेदना सह रहा हो। फिर उसने हाथ उठाया, मानो अपने को किसी के वार से बचा रहा हो, और बर्राने लगा, ''हाँ, वह सड़क पर खड़े थे...। रात के दस बजे थे। मैंने पीछे से जाकर.. मारो मत.. मारो मत, कहता तो हूँ, जाकर उन्हें गिरा दिया।''

यह कहते-कहते ईश्वरदास चौंक पड़ा, उसकी आँखें खुल गईं। उसने अँगड़ाई लेकर कहा- ''क्या मैं सो गया था?''

माया की आँखों से ज्वाला निकल रही थी। वह कुछ न बोली। ईश्वरदास ने कहा- ''बड़ा बुरा ख्वाब देखा।''

माया ने मानो क़ब्र के अंदर से कहा- ''आप बहुत थक गए हैं। जाकर लेट रहिए।''

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