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प्रेमचन्द की कहानियाँ 10

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :142
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9771
आईएसबीएन :9781613015087

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दसवाँ भाग


फुंदन भी इन्हीं गरीब लड़कों में था। और लड़के मिठाइयाँ खाते थे, वह सिर्फ़ भूखी निगाहों से देखता था। रोने और रूठने, बालोचित मिन्नत और खुशामद एक से भी उसकी उद्देश्य पूर्ति न होती थी, गोया नाकामी ही उसकी तक़दीर में लिखी हो। मगर इन नाकामियों के बावजूद उसका हौसला पस्त न होता था।

आज फुंदन दोपहर को न सोया। जतीन ने आज कच्ची गरी और इमर्तियाँ लाने का जिक्र किया था। यह खबर लड़कों की उस दुनिया में किसी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना से कम न थी। सुबह ही से जतीन की तरफ़ दिल लगा हुआ था। ऐसी आँखों में नींद कहाँ से आती?

फुंदन ने बारा में पहुँचकर सोचा- क्या अभी सबेर है? इस वक्त तो जतीन आ जाता था, अभी सबेर है। चुन्नू और सोहन और कल्लू एक भी तो नहीं उठे। जतीन सड़क पर पहुँच गया होगा। इमर्तियाँ जरूर लाएगा, सुर्ख और चिकनी होंगी। एक बार न-जाने कब.. हाँ, दसहरे के मेले में एक इमर्ती खाई थी। कितनी मज़ेदार थी! उस जायक़े को याद करके उसके मुँह में पानी भर आया। लालसा और भी तेज हो गयी। यह बारा के आगे निकल गया। अब सड़क तक समतल मैदान था, लेकिन जतीन का कहीं पता न था।

कुछ देर तक फुंदन गाँव के निकस पर खड़ा जतीन की राह देखता रहा। उसके दिल में एक गुदगुदी उठी- आज मैं सबसे पहले जतीन को पुकारूँगा। मैं जतीन के साथ-साथ गाँव मैं पहुँचूँगा। तब लोग कितना चकराएँगे? इस ख्याल ने उसके इश्तियाक में बेसब्री का इजाफ़ा कर दिया। वह तालियाँ बजा-बजाकर दिल-ही-दिल में चहकता हुआ सडक की तरफ़ चला।

संयोग से उसी वक्त गेंदा आ गया। यह गाँव का पंचायती कुत्ता था, चौकीदार-का-चौकीदार, खिलौने का खिलौना। नित्य नियमानुसार तीसरे पहर का गश्त लगाने निकला था। इसी वक्त साँड और बैल खेतों में घुसते थे। यहीं पहुँचा तो फुंदन को देखकर रुक गया और दुम हिलाकर गोया पूछा- तुम आज यहाँ क्यूँ उतार? फुंदन ने उसके सिर पर थपकियाँ दीं, मगर गेंदा को ज्यादा बातचीत करने की फुर्सत न थी। वह आगे बढ़ा तो फुंदन भी उसके पीछे दौड़ा। अब उसके दिल में एक ताज़ा उमंग पैदा हो रही थी। वह अकेला न था। उसका दोस्त भी साथ था। वह अब कच्ची सड़क पर जतीन का स्वागत करना चाहता था। सड़क पर पहुँचकर उसने दूर तक निगाह दौड़ाई। जतीन का कहीं निशान नहीं था। कई बार उसे वहम हुआ, वह जतीन आ रहा है, मगर एक लम्हे में उसका निवारण हो गया। सड़क पर नाज़िरी दर्शनीय दिलचस्पियों की कमी न थी। बैल-गाड़ियों की कतारें थीं। कभी-कभी एक्के और पैर-गाड़ियाँ भी निकल जाती थीं। एक बार एक ऊँट भी नज़र आया, जिसके पीछे वह कई सौ क़दम तालियाँ बजाता गया, मगर इन शीघ्रगामी दिलचस्पियों में वह लालसा किसी मीनार की तरह खड़ी थी।

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