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प्रेमचन्द की कहानियाँ 10

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :142
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9771
आईएसबीएन :9781613015087

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दसवाँ भाग


सरला ने पूछा- ''धीरेन कहाँ हैं? देखा, पुलिस वालों ने जैसी हिमाक़त की है! तुम जानते हो मंगल के दिन शाम के वक्त वह हाईकोर्ट में थे। क्यों, सफ़ाई हो गई ना? कब तक आएँगे? तुम उनसे मिले थे?''

जोतिंद्र के चेहरे पर सरला के ख्याल की ताईद नहीं थी। वह फ़िक्रमंद और दर्दनाक निगाहों से सरला की तरफ़ देख रहे थे। सरला ने घवराकर कहा- ''जोतिन, तुम इस क़दर परेशान क्यों हो? साफ़-साफ़ क्यों नहीं कहते?''

जोतिन ने कुछ सोचकर कहा- ''शायद धीरेन आज रात को न आ सकें। मुमकिन है, कुछ विलंब हो। ज्यों ही उनकी सफ़ाई होगी, ग़ालिबन उनका तुमसे मिलना जरूरी है। मैं ख्याल करता हूँ..।'' यह कहते जोतिन बाबू रुक गए। सरला ताड़ गई कि यह कोई मनहूस खबर लाए हैं। घबराकर बोली- ''जोतिन, मुझसे इस वक्त पहेलियाँ मत बुझाओ, जो कुछ कहना हो साफ़-साफ़ कहो। मुझमें अब बरदाश्त करने की ताक़त नहीं है। क्या धीरेन अभी रिहा न हो सकेंगे? क्या उन्होंने अपने रिहाई के सबूत में यह नहीं कहा कि वह मंगल को चार बजे अदालत में थे? मेरे ख्याल में यह तो बहुत क़ाफ़ी सबूत था।''

जोतिंद्र ने लंबी साँस लेकर कहा- ''मंगल के दिन तीसरे पहर को वह अदालत में नहीं थे।''

सरला- ''क्या! अदालत में नहीं थे? आखिर तब कहाँ थे?''

जोर्तिद्र- ''यही तो वह बतलाते नहीं।''

सरला- ''क्यों, आखिर वजह? क्या आप ही अपने दुश्मन हुए हैं?''

जोतिंद्र- ''वह कुछ नहीं जाहिर करते। अदालत में उनके दो बजे तक रहने का सबूत मिलता है। यह भी साबित होता है कि वह एक किराए की गाड़ी में बैठकर कहीं गए, मगर कहाँ गए थे और तीन बजे से छ: बजे तक कहाँ रहे, इसका कुछ पता नहीं देते।''

सरला ने घबराई हुई अवस्था में सिर को हाथों से थामकर कहा- ''मेरी अक्ल कुछ काम नहीं करती। धीरेन को क्या हो गया है? यह गैरमुमकिन है कि वह इस साजिश में शरीक हों। अगर वह खुद अपनी जबान से कहें, तब भी मुझे एतबार नहीं आ सकता। मगर वह साफ़-साफ़ हक़ीक़ते-हाल क्यों नहीं कहते? क्या तुम लोगों ने उन्हें नहीं समझाया?''

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