कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 10 प्रेमचन्द की कहानियाँ 10प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दसवाँ भाग
ज़रीना तेवर बदलकर बोली- ''तुम्हारी खातिर से सब-कुछ कर सकती हूँ गालियाँ नहीं बर्दाश्त कर सकती।''
सईद- ''क्या अभी तुम्हारे ख्याल में गालियों की काफ़ी सजा नहीं हुई?''
ज़रीना- ''तब तो आपने मेरी इज्जत की खूब कद्र की। मैंने रानियों से चिलमचियाँ उठवाई हैं। ये बेगम साहिबा हैं किस ख्याल में। मैं अगर इसे कुंद छुरी से काटूँ तब भी इनकी बदजबानियों की काफ़ी सजा न होगी।''
सईद- ''अब यह सितम नहीं देखा जाता।''
ज़रीना- 'आखें बंद कर लो।''
सईद- ''ज़रीना, गुस्सा न दिलाओ। मैं कहता हूँ अब इन्हें माफ़ करो।''
ज़रीना ने सईद को ऐसी हिकारत-भरी गुस्से की निगाह से देखा गोया वह उसका गुलाम है। खुदा जाने उस पर उसने क्या मंतर मार दिया था कि उसमें खानदानी शील, उत्तम स्वभाव और मानवीय लज्जा जरा भी बाकी न रहा था। वह शायद उसे गुस्से में जैसे मर्दाना जत्थे के क़ाबिल ही समझती थी। मुखाकृति से अंतःकरण पर हुक्म लगाने में कितनी गलती करते हैं। ऐसे दिलफरेब जाहिर के पर्दे में इतनी निष्ठुरता और उपद्रव। कोई शक नहीं, हुस्न क़ियाफा का दुश्मन है। बोली- ''अच्छा तो अब आपको मुझ पर गुस्सा आने लगा। क्यों न हो, आखिर बेगम विवाहिता ही तो है। मैं तो बेशरम कुतिया ही ठहरी।''
सईद- ''तुम ताने देती हो और मुझसे यह खून नहीं देखा जाता।''
ज़रीना- ''तो यह कमची हाथ में लो और इसे पूरी सौ आघात लगाओ, गुस्सा उतर जाएगा। इसका यही इलाज है।''
सईद- ''फिर वही मज़ाक़!''
ज़रीना- ''नहीं, मैं मज़ाक़ नहीं करती।''
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