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प्रेमचन्द की कहानियाँ 12

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9773
आईएसबीएन :9781613015100

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग


चंदूमल- मुझसे भरी अदालत में झूठ न बोला जायगा। अपने हजारों जानने वाले अदालत में होंगे। किस-किससे मुँह छिपाऊँगा? कहीं निकलने की जगह भी चाहिए।

इंस्पेक्टर- ये सब बातें निज के मुआमलों के लिए हैं, पोलिटिकल मुआमलों में झूठ-सच, शर्म और हत्या, किसी का भी खयाल नहीं किया जाता।

चंदूमल- मुँह में कालिख लग जायगी ।

इंस्पेक्टर- सरकार की निगाह में इज्जत चौगुनी हो जायगी।

चंदूमल- (सोचकर) जी नहीं, गवाही न दे सकूँगा। कोई और गवाह बना लीजिए।

इंस्पेक्टर- याद रखिए, यह इज्जत खाक में मिल जायगी।

चंदूमल- मिल जाय, मजबूरी है।

इंस्पेक्टर- अमन सभा के कोषाध्यक्ष का पद छिन जायगा।

चंदूमल- उससे कौन रोटियाँ चलती हैं!

इस्पेक्टर- बंदूक का लाइसेंस छिन जायगा।

चंदूमल- छिन जाय बला से।

इंस्पेक्टर- इनकम-टैक्स की जाँच फिर से होगी!

चंदूमल- जरूर कराइए। यह तो मेरे मन की बात हुई।

इंस्पेक्टर- बैठने को कुरसी न मिलेगी।

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