कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 12 प्रेमचन्द की कहानियाँ 12प्रेमचंद
|
1 पाठकों को प्रिय 110 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग
चंदूमल- मुझसे भरी अदालत में झूठ न बोला जायगा। अपने हजारों जानने वाले अदालत में होंगे। किस-किससे मुँह छिपाऊँगा? कहीं निकलने की जगह भी चाहिए।
इंस्पेक्टर- ये सब बातें निज के मुआमलों के लिए हैं, पोलिटिकल मुआमलों में झूठ-सच, शर्म और हत्या, किसी का भी खयाल नहीं किया जाता।
चंदूमल- मुँह में कालिख लग जायगी ।
इंस्पेक्टर- सरकार की निगाह में इज्जत चौगुनी हो जायगी।
चंदूमल- (सोचकर) जी नहीं, गवाही न दे सकूँगा। कोई और गवाह बना लीजिए।
इंस्पेक्टर- याद रखिए, यह इज्जत खाक में मिल जायगी।
चंदूमल- मिल जाय, मजबूरी है।
इंस्पेक्टर- अमन सभा के कोषाध्यक्ष का पद छिन जायगा।
चंदूमल- उससे कौन रोटियाँ चलती हैं!
इस्पेक्टर- बंदूक का लाइसेंस छिन जायगा।
चंदूमल- छिन जाय बला से।
इंस्पेक्टर- इनकम-टैक्स की जाँच फिर से होगी!
चंदूमल- जरूर कराइए। यह तो मेरे मन की बात हुई।
इंस्पेक्टर- बैठने को कुरसी न मिलेगी।
|