लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 12

प्रेमचन्द की कहानियाँ 12

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9773
आईएसबीएन :9781613015100

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

110 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग


बेटी का ठाट-बाट देखकर पार्वती की माँ फूली न समाई। उसकी दुनिया उन्हीं इने-गिने मकानों और उनके निवासियों तक सीमित थी। वहाँ के गहने-कपड़े, शादी-ब्याह, झगड़े-टंटे उसके अस्तित्व की धुरी थे। वह उनमें ही बसती थी और उन्हीं का सपना देखती थी। मुहल्ले में किसी के घर बच्चा पैदा होना उसके लिये पनामा नहर के उद्घाटन से भी बड़ी घटना थी, और किसी घर में एक नये कंठे का बनना देहली के निर्माण से कहीं अधिक शानदार। पार्वती को देखकर बाग-बाग हो गई। उसे साथ लेकर पड़ौसिनों के घर गई। जो भी उसके कंगन और चन्द्रहार को देखता, लोटपोट हो जाता। माँ सामने वाले की सामर्थ्य के अनुसार उन गहनों का मूल्य बढ़ाती रहती थी। दो-तीन दिन पूरे मुहल्ले में उन गहनों की नुमाईश हुई। पार्वती का सिक्का जम गया, उसका रौब बैठ गया।

पार्वती की चाल-ढाल से एक शान टपकती थी। वह खाना खाने बैठती तो नाक सिकोड़ लेती, घी बेस्वाद है; पानी पीती तो मुँह बनाकर, ठंडा नहीं है। माँ सबको सुना-सुनाकर कहती,’भला इनसे पूछो, घर का सा सुख यहाँ कहाँ मिलेगा। वहाँ अपने मन का खाती थी, अपने मन का पहनती थी। यहाँ गृहस्थी में तो मोटा-महीन सब मिलेगा। मगर बेचारी में जरा भी ऐंठ नहीं है, वही पुराना स्वभाव है, वही अल्हड़पन।’

पार्वती की बिटिया तारा पूरे मुहल्ले की गुड़िया बनी हुई थी। सभी छोटे-बड़े उसे गोद में उठाते और प्यार से चूमते। कोई कहता, बेटी यह हँसली हमको दे दो, तो तारा तोतली बोली में कहती,’हमाली है।’ कोई पूछता, बेटी ये कड़े किसने बनवाए हैं, तारा कहती,’मेले बाबूदी ने।’

शादी का दिन निकट आ गया। रस्म-रिवाज होने लगे। मुहल्ले की औरतें बन- सँवरकर आने लगीं, लेकिन पार्वती उन सबकी रानी लगती थी। सभी औरतों की दृष्टि उसके कंगन, चन्द्रहार और झुमकों पर ही टिकी रहती। सब उससे दबती, उसका लिहाज करती, उसकी हाँ में हाँ मिलाती। पार्वती को यह सम्मान केवल अपने गहनों के बल पर ही मिल रहा था। बरात चलने के दिन न्यौते में सुरेन्द्रनाथ भी आए। जब वे शाम के समय घर में गए तो मुस्कराकर पार्वती ने कहा,’आज जी चाहता है कि तुम्हारी पान-फूल से पूजा करूँ।’

मुस्कराकर सुरेन्द्र ने कहा,’बना रही हो।’

पार्वती,’नहीं, सच कहती हूँ। इस समय मन यही चाहता है। तुम्हारे इन गहनों ने मेरा बोलबाला कर दिया। सारे मुहल्ले में धाक जम गई, सबकी सब पानी भरती हैं। ये न होते तो झूठे भी कोई बात न पूछता। अपनी जमा अपने घर में है, लेकिन नेकनामी मुफ्त। ऐसा सौदा और क्या होगा!’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book