कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 12 प्रेमचन्द की कहानियाँ 12प्रेमचंद
|
1 पाठकों को प्रिय 110 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग
'तुमने उसे खत नहीं लिखा?'
'कभी नहीं।'
'तो मेरी गलती थी, क्षमा करो। तुम मेरी बहन न होतीं, तो मैं तुमसे यह सवाल भी न पूछती।'
'मैंने किसी को खत नहीं लिखा।'
'मुझे यह सुनकर खुशी हुई।'
'तुम मुस्कराती क्यों हो?'
'मैं!'
'जी हाँ, आप!'
'मैं तो जरा भी नहीं मुस्करायी।'
'क्या मैं अन्धी हूँ?'
'यह तो तुम अपने मुँह से ही कहती हो।'
'तुम क्यों मुस्करायीं?'
'मैं सच कहती हूँ, जरा भी नहीं मुसकरायी।'
'मैंने अपनी आँखों देखा।'
'अब मैं कैसे तुम्हें विश्वास दिलाऊँ?'
|