कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 12 प्रेमचन्द की कहानियाँ 12प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग
सुरेन्द्र,’और रुपए कहाँ हैं?’
पार्वती,’उन गहनों में रुपये नहीं लगेंगे।’
सुरेन्द्र,’मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा।’
पार्वती,’ये गहने जी के जंजाल हैं। इनसे मन भर गया। इन्हें बेचकर किसी बैंक में जमा कर दो। हर महीने मुझे उसका ब्याज दे दिया करना।’
सुरेन्द्र ने बात हँसी में उड़ानी चाही लेकिन पार्वती के हावभाव से ऐसा दृढ़ संकल्प प्रकट होता था कि वे उस विषय में गम्भीरता से विचार करने पर विवश हो गए।
दूसरे महीने में शीतला देवी के नाम बारह रुपये का एक गुमनाम मनीऑर्डर पहुँचा। कूपन में लिखा हुआ था, यह तुच्छ धनराशि स्वीकार कीजिए। ईश्वर की इच्छा हुई तो यह धनराशि स्थायी रूप से प्रतिमाह मिलती रहेगी। आप इसे जिस भाँति चाहें खर्च करें। अब से दुआएँ ही मेरा आभूषण होंगी। ये धातु के टुकड़े तो जी के जंजाल हैं, इनसे मेरा मन भर गया है।
6. जादू
नीला- तुमने उसे क्यों लिखा?’
'मीना- क़िसको?’
'उसी को?'
'मैं नहीं समझती!'
'खूब समझती हो! जिस आदमी ने मेरा अपमान किया, गली-गली मेरा नाम बेचता फिरा, उसे तुम मुँह लगाती हो, क्या यह उचित है?'
'तुम गलत कहती हो!'
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