कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 12 प्रेमचन्द की कहानियाँ 12प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग
श्यामा हृदय को दोनों हाथों से थामे यह दृश्य देख रही थी। वह मन में पछता रही थी कि मैंने क्यों इन्हें पानी लाने भेजा। अगर मालूम होता कि यों विधि धोखा देगी, तो प्यासी मर जाती पर इन्हें न जाने देती। श्यामा से कुछ दूर खजाँचन्द भी खड़ा था। श्यामा ने उसकी ओर क्षुब्ध नेत्रों से देखकर कहा- अब इनकी जान बचती नहीं मालूम होती।
खजाँचन्द- बन्दूक भी हाथ से छूट पड़ी है।
श्यामा- न जाने क्या बातें हो रही हैं। अरे गजब! दुष्ट ने उनकी ओर बन्दूक तानी है।
खजाँचन्द- जरा और समीप आ जायें, तो मैं बन्दूक चलाऊँ। इतनी दूर की मार इसमें नहीं है।
श्यामा- अरे! देखो वे सब धर्मदास को गले लगा रहे हैं। यह माजरा क्या है
खजाँ- कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
श्यामा- कहीं इसने कलमा तो नहीं पढ़ लिया
खजाँ- नहीं ऐसा क्या होगा। धर्मदास से मुझे ऐसी आशा नहीं है।
श्यामा- मैं समझ गयी। ठीक यही बात है। बन्दूक चलाओ।
खजाँ- धर्मदास बीच में है। कहीं लग न जाय।
श्यामा- कोई हर्ज नहीं। मैं चाहती हूँ पहला निशाना धर्मदास ही पर पड़े। कायर! निर्लज्ज! प्राणों के लिए धर्म त्याग दिया! ऐसी बेहयाई की जिन्दगी से मर जाना कहीं अच्छा है। क्या सोचते हो क्या तुम्हारे भी हाथ-पाँव फूल गये लाओ, बन्दूक मुझे दो। इस कायर को अपने हाथों से मारूँगी।
खजाँ- मुझे तो विश्वास नहीं होता कि धर्मदास...
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