कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 12 प्रेमचन्द की कहानियाँ 12प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बारहवाँ भाग
तीसरा- कुफ्र है! कुफ्र है!
पहला- उड़ा दो सिर मरदूद का, धुआँ इस पार।
दूसरा- ठहरो-ठहरो, मार डालना मुश्किल नहीं, जिला लेना मुश्किल है। तुम्हारे और साथी कहाँ हैं, धर्मदास!
धर्मदास- सब मेरे साथ ही हैं।
दूसरा- कलामे शरीफ की कसम, अगर तुम सब खुदा और उसके रसूल पर ईमान लाओ, तो कोई तुम्हें तेज निगाहों से भी देख न सकेगा।
धर्मदास- आप लोग सोचने के लिए और कुछ मौका न देंगे।
इस पर चारों सवार चिल्ला उठे- नहीं, नहीं, हम तुम्हें न जाने देंगे यह आखिरी मौका है!
इतना कहते ही पहले सवार ने बन्दूक छतिया ली और नली धर्मदास की ओर करके बोला- बस बोलो, क्या मन्जूर है
धर्मदास सिर से पैर तक काँपकर बोला- अगर मैं इस्लाम कबूल कर लूँ तो मेरे साथियों को तो कोई तलीफ न दी जाएगी
दूसरा- हाँ, अगर तुम जमानत करो कि वे भी इस्लाम कबूल कर लेंगे।
पहला- हम इस शर्त को नहीं मानते। तुम्हारे साथियों से हम खुद निपट लेंगे। तुम अपनी कहो, क्या चाहते हो हाँ या नहीं
धर्मदास ने जहर का घूँट पीकर कहा- मैं खुदा पर ईमान लाता हूँ।
पाँचों ने एक स्वर में कहा- अलहम्द व लिल्लाह! और बारी-बारी से धर्मदास को गले लगाया।
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