लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14

प्रेमचन्द की कहानियाँ 14

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :163
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9775
आईएसबीएन :9781613015124

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

111 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग


आज सेठजी को आये सातवाँ दिन है। सन्ध्या का समय है। सेठजी संध्या करने जा रहे हैं कि गोपीनाथ की लड़की बिन्नी ने आकर प्रमीला से कहा, "माताजी, अम्माँ का जी अच्छा नहीं है ! भैया को बुला रही हैं।

प्रमीला ने कहा, "आज तो वह न जा सकेगा। उसके पिता आ गये हैं, उनसे बातें कर रहा है।"

कृष्णचन्द्र ने दूसरे कमरे में से उसकी बातें सुन लीं। तुरंत आकर बोला, 'नहीं अम्माँ, मैं दादा से पूछकर जरा देर के लिए चला जाऊँगा।'

प्रमीला ने बिगड़कर कहा, 'तू कहीं जाता है तो तुझे घर की सुधि ही नहीं रहती। न-जाने उन सभों ने तुझे क्या बूटी सुँघा दी है।

'मैं बहुत जल्दी चला आऊँगा अम्माँ, तुम्हारे पैरों पड़ता हूँ।'

'तू भी कैसा लड़का है ! वह बेचारे अकेले बैठे हुए हैं और तुझे वहाँ जाने की पड़ी हुई है।'

सेठजी ने भी ये बातें सुनीं। आकर बोले, 'क्या हरज है, जल्दी आने को कह रहे हैं तो जाने दो।'

कृष्णचन्द्र प्रसन्नचित्त बिन्नी के साथ चला गया। एक क्षण के बाद प्रमीला ने कहा, 'ज़ब से मैंने गोपी की तस्वीर देखी है, मुझे नित्य शंका बनी रहती है, कि न-जाने भगवान् क्या करने वाले हैं। बस यही मालूम होता है।'

सेठजी ने गम्भीर स्वर में कहा, 'मैं भी तो पहली बार देखकर चकित रह गया था। जान पड़ा, गोपीनाथ ही खड़ा है।'

'गोपी की घरवाली कहती है कि इसका स्वभाव भी गोपी ही का-सा है।'

सेठजी गूढ़ मुस्कान के साथ बोले, 'भगवान् की लीला है कि जिसकी मैंने हत्या की, वह मेरा पुत्र हो। मुझे तो विश्वास है, गोपीनाथ ने ही इसमें अवतार लिया है।'

प्रमीला ने माथे पर हाथ रखकर कहा, 'यही सोचकर तो कभी-कभी मुझे न-जाने कैसी-कैसी शंका होने लगती है'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book