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प्रेमचन्द की कहानियाँ 14

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :163
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9775
आईएसबीएन :9781613015124

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग


विद्रोही मजदूरों ने जिस समय उनका मकान घेर लिया था, उस समय उनका आत्म-समर्पण ईश्वर की दया के सिवा और क्या था, पन्द्रह साल के निर्वासित जीवन में, फिर कृष्णचन्द्र के रूप में, कौन उनकी आत्मा की रक्षा कर रहा था? सेठजी के अन्त:करण से भक्ति की विह्वलता में डूबी हुई जय-ध्वनि निकली क़ृष्ण भगवान् की जय ! और जैसे सम्पूर्ण ब्रह्मांड दया के प्रकाश से जगमगा उठा।

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5. डिक्री के रुपये

नईम और कैलास में इतनी शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक मित्रता थी, जितनी दो प्राणियों में हो सकती है। नईम दीर्घकाल विशाल वृक्ष था, कैलास भाग का कोमल पौधा। नईम को क्रिकेट और फुटबाल, सैर और शिकार का व्यसन था, कैलास को पुस्तकावलोकन का। नईम विनोद शील, वाक्चतुर, निर्द्वन्द्व, हास्यप्रिय, विलासी युवक था। उसे कल की चिन्ता न सताती थी। विद्यालय उसके लिए क्रीड़ा का स्थान था, और कभी-कभी बेंच पर खड़े होने का। इसके प्रतिकूल कैलास एक एकांतप्रिय, आलसी, व्यायाम से कोसों भागने वाला, आमोद-प्रमोद से दूर रहनेवाला, चिंताशील, आदर्शवादी जीव था। वह भविष्य को कल्पनाओं से विकल रहता था।

नईम एक ससम्पन्न, उच्चपदाधिकारी पिता का एकमात्र पुत्र था, कैलास एक साधारण व्यवसायी के कई पुत्रों में से एक। उसे पुस्तकों के लिए काफी धन न मिला था, माँग-जाँचकर निकाला करता था। एक के लिए जीवन आनंद का स्वप्न था, और दूसरे के लिए विपत्तियों का बोझ। पर इतनी विषमताओं के होते हुए भी उन दोनों में घनिष्ठ मैत्री और निःस्वार्थ विशुद्व प्रेम था। कैलास मर जाता, पर नईम का अनुग्रह-पात्र न बनता, और नईम मर जाता, पर कैलास से बेअदबी न करता। नईम की खातिर से कैलास कभी-कभी स्वच्छ, निर्मल वायु का सुख उठा लिया करता। कैलास की खातिर से नईम भी कभी-कभी भविष्य के स्वप्न देख लिया करता था। नईम के लिए राज्यपद का द्वार खुला हुआ था, भविष्य कोई आपार सागर न था। कैलास को अपने हाथों से कुँआ खोदकर पानी पीना था। भविष्य एक भीषण संग्राम था, जिसके स्मरण-मात्र से उसका चित्त अशांत हो उठता था।

कालेज से निकलने के बाद नईम को शासन-विभाग में एक उच्च पद प्राप्त हो गया, यद्यपि वह तीसरी श्रेणी में पास हुआ था। कैलास प्रथम श्रेणी में पास हुआ था, किंतु उसे बरसों एड़ियाँ रगड़ने, खाक छानने और कुएँ झाकँने पर भी कोई काम न मिला। यहाँ तक कि विवश होकर उसे अपनी कलम का आश्रय लेना पड़ा। उसने एक समाचार पत्र निकाला। एक ने राज्याधिकार का रास्ता लिया, जिसका लक्ष्य धन था, और दूसरे ने सेवा मार्ग का सहारा लिया, जिसका परिणाम ख्याति, कष्ट और कभी-कभी कारागार होता है।

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