कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14 प्रेमचन्द की कहानियाँ 14प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग
नईम को उसके दफ्तर के बाहर कोई नहीं जानता था। किंतु वह बँगले में रहता, हवागाड़ी पर हवा खाता, थिएटर देखता और गरमियों में नैनीताल की सैर करता था। कैलास को सारा संसार जानता था, उसके रहने का मकान कच्चा था, सवारी के लिए अपने पाँव। बच्चों के लिए दूध भी मुश्किल से मिलता, साग-सब्जी में काट-कपट करना पड़ता था।
नईम के लिए सबसे बड़े सौभाग्य की बात यह थी कि उसके केवल एक पुत्र था, पर कैलास के लिए सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात उसकी संतान-वृद्धि थी, जो उसे पनपने न देती थी।
दोनों मित्रों में पत्र-व्यवहार होता रहता था। कभी-कभी दोनों में मुलाकात भी हो जाती थी। नईम कहता था- यार, तुम्हीं मजे में हो, देश और जाति की कुछ सेवा तो कर रहे हो। यहाँ पेट पूजा के सिवा और किसी काम के न हुए। पर यह पेट-पूजा ‘उसने कई दिनों की कठिन तपस्या से हृदयंगम कर पाई थी, और उसके प्रयोग के लिए अवसर ढूँढ़ता रहता था।
कैलास खूब समझता था कि यह केवल नईम की विनयशीलता है। यह मेरी कुशलता से दुःखी होकर मुझे उपाय से सांत्वना देना चाहता है। इसलिए वह अपनी वास्तविक स्थिति को उससे छिपाने का विफल प्रयत्न किया करता था।
विष्णुपुर की रियासत में हाहाकार मचा हुआ था। रियासत का मैनेजर अपने बँगले में ठीक दोपहर के समय, सैकड़ों आदमियों के सामने, कत्ल कर दिया गया था। यद्यपि खूनी भाग गया था, पर अधिकारियों को संदेह था कि कुँवर साहब की दुष्प्रेरणा से ही यह हत्याभिनय हुआ है। कुँवर साहब अभी बालिग न हुए थे। रियासत का प्रबन्ध कोर्ट आफ् वार्ड द्वारा होता था।
मैनेजर पर कुँवर साहब की देख-रेख का भार भी था। विलास-प्रिय कुँवर को मैनेजर का हस्तक्षेप बहुत ही बुरा मालूम होता था। दोनों में बरसों से मन मुटाव था। यहाँ तक की कई बार प्रत्यक्ष कटु वाक्यों की नौबत भी आ पहुँची थी। अतएव कुँवर साहब पर संदेह होना स्वाभाविक ही था। इस घटना का अनुसंधान करने के लिए जिले के हाकिम ने मिरजा नईम को नियुक्त किया। किसी पुलिस-कर्मचारी द्वारा तहकीकात कराने में कुँवर साहब के अपमान का भय था।
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