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प्रेमचन्द की कहानियाँ 14

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :163
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9775
आईएसबीएन :9781613015124

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग


कई दिनों तक कैलास के व्यक्तिगत और सम्पादकीय कर्तव्यों मे संघर्ष होता रहा। अंत को जाति ने व्यक्ति को परास्त कर दिया। उसने निश्चय किया कि मैं इस रहस्य का यथार्थ रूप दिखा दूँगा, शासन के उत्तरदायित्व को जनता के सामने खोलकर रख दूँगा, शासन विभाग के कर्मचारियों की स्वार्थ लोलुपता का नमूना दिखा दूँगा, दुनिया को दिखा दूँगा कि सरकार किनकी आँखों से देखती है, किनके कानों से सुनती है। उसकी अक्षमता, उसकी अयोग्यता और उसकी दुर्बलता को प्रमाणित करने का इससे बढ़कर और कौन-सा उदाहरण मिल करता है? नईम मेरा मित्र है, तो हो, जाति के सामने वह कोई चीज नहीं है। उसकी हानि के भय से मैं राष्ट्रीय कर्तव्य से क्यों मुँह फेरूँ, अपनी आत्मा को क्यों दूषित करूँ, अपनी स्वाधीनता को क्यों कलंकित करूँ? आह प्राणों से प्रिय नईम! मुझे क्षमा करना, आज तुम-जैसे मित्र रत्न को अपने कर्तव्य को वेदी पर बलि चढ़ाता हूँ। मगर तुम्हारी जगह अगर मेरा पुत्र होता, तो उसे भी इसी कर्तव्य की बलि वेदी पर भेंट कर देता!

दूसरे दिन से कैलास ने इस दुर्घटना की मीमांसा शुरू की। जो कुछ उसने नईम से सुना था, वह सब एक लेखमाला के रूप में प्रकाशित करने लगा। घर का भेदी लंका ढाये! अन्य सम्पादकों को जहाँ अनुमान तर्क और युक्ति के आधार पर अपना मत स्थिर करना पड़ता था, और इसलिए वे कितनी ही अनर्गल, अपवादपूर्ण बातें लिख डालते थे, वहाँ कैलास की टिप्पणियाँ प्रत्यक्ष प्रमाणों से युक्त होती थी। वह पते-पते की बात कहता था, और उस निर्भीकता के साथ जो दिव्य अनुभव का निर्देश करती थी। उसके लेखों में विस्तार कम, पर सार अधिक होता था। उनसे नईम को भी न छोड़ा, उसकी स्वार्थ लिप्सा का खूब खाका उड़ाया। यहां तक कि उस धन की संख्या भी लिख दी, जो इस कुप्सित व्यापार पर परदा डालने के लिए उसे दी गई थी। सबसे मजे की बात यह थी कि उनके नईम से एक राष्ट्रीय गुप्तचर की मुलाकात का भी उल्लेख किया, जिसने नईम को रुपये देते हुए देखा था। अंत में गवर्नेंट को भी चैलेंज दिया कि जो उसमें साहस हो, तो मेरे प्रमाणों को झूठा साबित कर दे। इतना ही नहीं उसने वह वार्तालाप भी अक्षरशः प्रकाशित कर दिया, जो उसके और नईम के बीच हुआ था। रानी का नईम के पास जाना, उसके पैरों पर सभी प्रसंगों ने उसके लेखों में एक जासूसी उपन्यास का मजा पैदा कर दिया।

इन लेखों ने राजनीति क्षेत्र में हलचल मचा दी। पत्र-सम्पादकों को अधिकारियों पर निशाने लगाने के ऐसे अवसर बड़े सौभाग्य से मिलते हैं। जगह-जगह शासन की करतूत की निंदा करने के लिए सभाएँ होने लगीं। कई सदस्यों ने व्यवस्थापक सभा में इस विषय पर प्रश्न करने की घोषणा की। शासकों को कभी ऐसी मुँह की न खानी पड़ी थी। आखिर उन्हें अपनी मान-रक्षा के लिए इसके सिवा और कोई उपाय न सूझा कि वे मिरजा नईम को कैलास पर मान-हानि का अभियोग चलाने के लिए विवश करें।

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