कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14 प्रेमचन्द की कहानियाँ 14प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग
कैलास पर इस्तगासा दायर हुआ। मिरजा नईम की ओर से सरकार पैरवी करती थी। कैलास स्वयं अपनी पैरवी कर रहा था। न्याय के प्रमुख संरक्षकों (वकील-बैरिस्टरों) ने किसी अज्ञात कारण से उसकी पैरवी करना अस्वीकार किया। न्यायाधीश को हारकर कैलास को, कानून की सनद न रखते हुए भी अपने मुकदमे की पैरवी करने की आज्ञा देनी पड़ी। महीनों अभियोग चलता रहा। जनता में सनसनी फैल गई। रोज हजारों आदमी अदालत में एकत्र होते थे। बाजारों में अभियोग की रिपोर्ट पढ़ने के लिए समाचार पत्रों की लूट होती थी। चतुर पाठक पढ़े हुए पत्रों में घड़ी रात जाते-जाते दुगने पैसे खड़े कर लेते थे, क्योंकि उस समय तक पत्र विक्रेताओं के पास कोई पत्र न बचने पाता था जिन बातों का ज्ञान पहले गिने-गिनाए पत्र ग्राहकों को था, उन पर अब जनता की टिप्पणियाँ होने लगीं। नईम की मिट्टी कभी इतनी खराब न थी; गली-गली घर-घर उसी की चर्चा थी। जनता का क्रोध उसी पर केन्द्रित हो गया था।
वह दिन भी स्मरणीय रहेगा, जब दोनों सच्चे, एक दूसरे पर प्राण देने वाले मित्र अदालत में आमने-सामने खड़े हुए और कैलास ने मिरजा नईम से जिरह करनी शुरू की। कैलास को ऐसा मानसिक कष्ट हो रहा था, मानो वह नईम की गर्दन पर तलवार चलाने जा रहा है। नईम के लिए वह अग्नि था। नईम प्रसन्न बनने की चेष्टा करता था, कभी-कभी सूखी हँसी भी हँसता था, लेकिन कैलास- आह, उस गरीब के दिल पर जो गुजर रही थी, उसे कौन जान सकता है !
कैलास ने पूछा- आप और मैं साथ पढ़ते थे, इसे आप स्वीकार करते है?
नईम- अवश्य स्वीकार करता हूँ।
कैलास- हम दोनों में इतनी घनिष्ठता थी कि हम आपस में कोई परदा न रखते थे, इसे आप स्वीकार करते हैं?
नईम- अवश्य स्वीकार करता हूँ।
कैलास- जिन दिनों आप इस मामले की जाँच कर रहे थे, मैं आपसे मिलने गया था, इसे भी आप स्वीकार करते हैं?
नईम- अवश्य स्वीकार करता हूँ।
कैलास- क्या उस समय आपने मुझसे यह नहीं कहा था कि कुँवर साहब की प्रेरणा से यह हत्या हुई है?
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