कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14 प्रेमचन्द की कहानियाँ 14प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग
दूध के कुल्हड पर वह हंस पडी। प्रेमवती भी मुस्करायी, परन्तु चन्द्रा रुष्ट हो गयी। बोली- बिना हंसी की हंसी हमें नहीं आती। इसमें हंसने की क्या बात है?
सेवती- आओ, हम तुम मिलकर गायें।
चन्द्रा- कोयल और कौए का क्या साथ?
सेती- क्रोध तो तुम्हारी नाक पर रहता है।
चन्द्रा- तो हमें क्यों छेडती हो? हमें गाना नहीं आता, तो कोई तुमसे निन्दा करने तो नहीं जाता।
‘कोई’ का संकेत राधाचरण की ओर था। चन्द्रा में चाहे और गुण न हों, परन्तु पति की सेवा वह तन-मन से करती थी। उसका तनिक भी सिर धमका कि इसके प्राण निकला। उनको घर आने में तनिक देर हुई कि वह व्याकुल होने लगी। जब से वे रुड़की चले गये, तब से चन्द्रा का हँसना-बोलना सब छूट गया था। उसका विनोद उनके संग चला गया था। इन्हीं कारणों से राधाचरण को स्त्री का वशीभूत बना दिया था। प्रेम, रूप-गुण, आदि सब त्रुटियों का पूरक है।
सेवती- निन्दा क्यों करेगा, ‘कोई’ तो तन-मन से तुम पर रीझा हुआ है।
चन्द्रा- इधर कई दिनों से चिट्ठी नहीं आयी।
सेवती- तीन-चार दिन हुए होंगे।
चन्द्रा- तुमसे तो हाथ-पैर जोड़ कर हार गयी। तुम लिखती ही नहीं।
सेवती- अब वे ही बातें प्रतिदिन कौन लिखे, कोई नयी बात हो तो लिखने को जी भी चाहे।
चन्द्रा- आज विवाह के समाचार लिख देना। लाऊं कलम-दवात?
सेवती- परन्तु एक शर्त पर लिखूंगी।
चन्द्रा- बताओ।
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