कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14 प्रेमचन्द की कहानियाँ 14प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग
सेवती- कुछ दिनों घर में खूब धूमधाम रहेगी। भाभी गीत गायेंगी। हम ढोल बजायेंगें। क्यों भाभी?
चन्द्रा- मुझे नाचना गाना नहीं आता।
चन्द्रा का स्वर कुछ भद्दा था, जब गाती, स्वर-भंग हो जाता था। इसलिए उसे गाने से चिढ़ थी।
सेवती- यह तो तुम आप ही करो। तुम्हारे गाने की तो संसार में धूम है।
चन्द्रा जल गयी, तीखी होकर बोली- जिसे नाच-गाकर दूसरों को लुभाना हो, वह नाचना-गाना सीखे।
सेवती- तुम तो तनिक-सी हंसी में रूठ जाती हो। जरा वह गीत गाओ तो- तुम तो श्याम बड़े बेखबर हो। इस समय सुनने को बहुत जी चाहता है। महीनों से तुम्हारा गाना नहीं सुना।
चन्द्रा- तुम्हीं गाओ, कोयल की तरह कूकती हो।
सेवती- लो, अब तुम्हारी यही चाल अच्छी नहीं लगती। मेरी अच्छी भाभी, तनिक गाओ।
चन्द्रा- मैं इस समय न गाऊंगी। क्यों मुझे कोई डोमनी समझ लिया है?
सेवती- मैं तो बिन गीत सुने आज तुम्हारा पीछा न छोडूंगी।
सेवती का स्वर परम सुरीला और चित्ताकर्षक था। रूप और आकृति भी मनोहर, कुन्दन वर्ण और रसीली आंखें। प्याली रंग की साड़ी उस पर खूब खिल रही थी। वह आप-ही-आप गुनगुनाने लगी:
आप तो श्याम पीयो दूध के कुल्हड,
मेरी तो पानी पै गुजर-
पानी पै गुजर हो। तुम तो श्याम...
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