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प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776
आईएसबीएन :9781613015131

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


कल की बात है, चार स्वराजियों न मेरा तांगा किया, कटरे से स्टेशन चले, हुकुम मिला कि तेज चलो। रास्ते-भर गांधीजी की जय! गांधीजी की जय! पुकारते गए। कोई साहब बाहर से आ रहे थे और बड़ी भीड़ें और जुलूस थे। कठपुतली की तरह रास्ते-,भर उछलते-कूदते गए। स्टेशन पहुंचकर मुश्किल से चार आने दिए। मैंने पूरा किराया मांगा, मगर वहां गांधी जी की जय! गांधी जी की जय के सिवाय क्या था! मैं चिल्लाया मेरा पेट! मेरा पेट! मेरा तांगा थिएटर का स्टेज था, आप नाचे-कूदे और अब मजदूरी नहीं देते! मगर मैं चिल्लाता ही रहा, वह भीड़ में गायब हो गए। मैं तो समझता हूं कि लोग पागल हो गए हैं, स्वराज मांगते हैं, इन्हीं हरकतों पर स्वराज मिलेगा! ऐ हुजूर अजब हवा चल रही है। सुधार तो करते नहीं, स्वराज मांगते हैं। अपने करम तो पहले दुरूस्त हो लें। मेरे लड़के को बरगलाया, उसने सब कपड़े इकटठे किए और लगा जिद करने कि आग लाग दूंगा। पहले तो मैंने समझाया कि मैं गरीब आदमी हूं, कहाँ से और कपड़े लाऊँगा, मगर जब वह न माना तो मैंने गिराकर उसको खूब मारा। फिर क्या था होश ठिकाने हो गए। हुजूर जब वक्त आएगा तो हमी इक्के-तांगेवाला स्वराज हांककर लाएंगे। मोटर पर स्वराज हर्गिज न आएगा। पहले हमको पूरी मजदूरी दो फिर स्वराज मांगो। हुजूर औरतें तो औरतें हम उनसे न जबान खोल सकते हैं न कुछ कह सकते हैं, वह जो कुछ दे देती हैं, लेना पड़ता है। मगर कोई-कोई नकली शरीफ लोग औरतों के भी कान काटते हैं। सवार होने से पहले हमारे नम्बर देखते हैं, अगर कोई चीज रास्ते में उनकी लापरवाही से गिर जाय तो वह भी हमारे सिर ठोकते हैं और मजा यह कि किराया कम दें तो हम उफ न करें।

एक बार का जिक्र सुनिए, एक नकली ‘वेल-वेल’ करके लाट साहब के दफ्तर गए, मुझको बाहर छोड़ा और कहा कि एक मिनट में आते हैं, वह दिन है कि आज तक इन्तजार ही कर रहा हूं। अगर यह हजरत कहीं दिखाई दिये तो एक बार तो दिल खोलकर बदला ले लूंगा फिर चाहे जो कुछ हो।

अब न पहले के-से मेहरबान रहे न पहले की-सी हालत। खुदा जाने शराफत कहां गायब हो गई। मोटर के साथ हवा हुई जाती है। ऐ हुजूर आप ही जैसे साहब लोग हम इक्केवालों की कद्र करते थे, हमसे भी इज्जत से पेश आते थे। अब वह वक्त है कि हम लोग छोटे आदमी हैं, हर बात पर गाली मिलती है, गुस्सा सहना पड़ता है। कल दो बाबू लोग जा रहे थे, मैने पूछा, तांगा… तो एक ने कहा, नहीं हमको जल्दी है। शायद यह मजाक होगा। आगे चलकर एक साहब पूछते हैं कि टैक्सी कहां मिलेगी? अब कहिए यह छोटा शहर है, हर जगह जल्द से जल्द हम लोग पहुँचा देते हैं। इस पर भी हमीं बतलाएं कि टैक्सी कहां मिलेगी। अन्धेर है अन्धेर! खयाल तो कीजिए यह नन्हीं सी जान घोड़ों की, हम और हमारे बाल-बच्चे और चौदह आने घंटा। हुजूर, चौदह आने में तो घोड़ी को एक कमची भी लगाने को जी नही चाहता। हुजूर हमें तो कोई चौबीस घंटे के वास्ते मोल ले ले।

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