लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776
आईएसबीएन :9781613015131

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

214 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


अब भी इस गिरे जमाने में भी कभी-कभी शरीफ रईस नजर आ ही जाते हैं। एक बार का जिक्र सुनिए, मेरे तांगे में सवारियां बैठीं। कश्मीरी होटल से निकलकर कुछ थोड़ी-सी चढ़ाई थी। कीटगंज पहुँचकर सामने वाले ने चौरास्ता आने से पहले ही चौदह आने दिये और उतर गया। फिर पिछली एक सवारी ने उतरकर चौदह आने दिए। अब तीसरी उतरती नहीं। मैंने कहा कि हजरत चौराहा आ गया। जवाब नदारद। मैंने कहा कि बाबू इन्हें भी उतार लो। बाबू ने देखा-भाला मगर वह नशे में चूर हैं उतारे कौन! बाबू बोले अब क्या करें। मैंने कहा- क्या करोगे। मामला तो बिल्कुल साफ है। थाने जाइए और अगर दस मिनट में कोई वारिस ने पैदा हो तो माल आपका।

बस हुजूर, इस पेशे में भी नित नये तमाशे देखने में आते हैं। इन आँखों सब कुछ देखा है हुजूर। पर्दे पड़ते थे, जाजिमें बांधी जाती थीं, घटाटोप लगाये जाते थे, तब जनानी सवारियां बैठती थीं। अब हुजूर अजब हालत है, पर्दा गया हवा के बहाने से। इक्का कुछ सुखों थोड़ा ही छोड़ा है। जिसको देखो यही कहता था कि इक्का नहीं तांगा लाओ, आराम को न देखा। अब जान को नहीं देखते और मोटर-मोटर, टैक्सी-टैक्सी पुकारते है। हुजूर हमें क्या हम तो दो दिन के मेहमान हैं, खुदा जो दिखायेगा, देख लेगें।

0 0 0

 

5. तावान

छकौड़ीलाल ने दुकान खोली और कपड़े के थानों को निकाल-निकाल रखने लगा कि एक महिला, दो स्वयंसेवकों के साथ उसकी दुकान छेकने आ पहुँची। छकौड़ी के प्राण निकल गये।

महिला ने तिरस्कार करके कहा- क्यों लाला तुमने सील तोड़ डाली न? अच्छी बात है, देखें तुम कैसे एक गिरह कपड़ा भी बेच लेते हो! भले आदमी, तुम्हें शर्म नहीं आती कि देश में यह संग्राम छिड़ा हुआ है और तुम विलायती कपड़ा बेच रहे हो, डूब मरना चाहिए। औरतें तक घरों से निकल पड़ी हैं, फिर भी तुम्हें लज्जा नहीं आती! तुम जैसे कायर देश में न होते तो उसकी यह अधोगति न होती!

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book