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प्रेमचन्द की कहानियाँ 15

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9776
आईएसबीएन :9781613015131

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग


आज मुझे इस अंधेरी कोठरी में अखबारों के लिए लेख लिखते देखकर कौन समझेगा कि इस नीमजान, झुकी हुई कमरवाले खस्ताहाल आदमी में भी कभी हौसला और हिम्मत और जोश का दरिया लहरें मारता था। क्या-क्या दोस्त थे जिनके चेहरों पर हमेशा मुसकराहट नाचती रहती थी। शेरदिल रामसिंह और मीठे गलेवाले देवीदास की याद क्या कभी दिल से मिट सकती है? वह अदन, वह बसरा, वह मिस्त्र; बस आज मेरे लिए सपने हैं। यथार्थ है तो यह तंग कमरा और अखबार का दफ्तर।

हां, ऐसी ही अंधेरी डरावनी सुनसान रात थी। मैं बारक के सामने बरसाती पहने हुए खड़ा मैग्जीन का पहरा दे रहा था। कंधे पर भरा हुआ राइफल था। बारक में से दो-चार सिपाहियों के गाने की आवाजें आ रही थीं, रह-रहकर जब बिजली चमक जाती थी तो सामने के ऊंचे पहाड और दरख्त और नीचे का हराभरा मैदान इस तरह नजर आ जाते थे जैसे किसी बच्चे की बड़ी-बड़ी काली भोली पुतलियों में खुशी की झलक नजर आ जाती है। धीरे-धीरे बारिश ने तूफानी सूरत अख्तियार की। अंधकार और भी अंधेरा, बादल की गरज और भी डरावनी और बिजली की चमक और भी तेज हो गयी। मालूम होता था प्रकृति अपनी सारी शक्ति से जमीन को तबाह कर देगी।

यकायक मुझे ऐसा मालूम हुआ कि मेरे सामने से किसी चीज की परछाई-सी निकल गयी। पहले तो मुझे खयाल हुआ कि कोई जंगली जानवर होगा लेकिन बिजली की एक चमक ने यह खयाल दूर कर दिया। वह कोई आदमी था, जो बदन को चुराये पानी में भीगता हुआ एक तरफ जा रहा था। मुझे हैरत हुई कि इस मूलसाधार वर्षा में कौन आदमी बारक से निकल सकता है और क्यों? मुझे अब उसके आदमी होने में कोई सन्देह न था। मैंने बन्दूक सम्हाल ली और फौजी कायदे के मुताबिक पुकारा- हाल्ट, हू कम्स देअर? फिर भी कोई जवाब नहीं।

कायदे के मुताबिक तीसरी बार ललकारने पर अगर जवाब न मिले तो मुझे बन्दूक दाग देनी चाहिए थी। इसलिए मैंने बन्दूक हाथ में लेकर खूब जोर से कड़ककर कहा- हाल्ट, हू कम्स देअर? जवाब तो अबकी भी न मिला मगर वह परछाई मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। अब मुझे मालूम हुआ कि वह मर्द नहीं औरत है। इसके पहले कि मैं कोई सवाल करूं उसने कहा- सन्तरी, खुदा के लिए चुप रहो। मैं हूं लुईसा।

मेरी हैरत की कोई हद न रही। अब मैंने उस पहचान लिया। वह हमारे कमाण्डिंग अफसर की बेटी लुईसा ही थी। मगर इस वक्त इस मूसलाधार मेह और इस घटाटोप अंधेरे में वह कहां जा रही है? बारक में एक हजार जवान मौजूद थे जो उसका हुक्म पूरा कर सकते थे। फिर वह नाजुकबदन औरत इस वक्त क्यों निकली और कहां के लिए निकली? मैंने आदेश के स्वर में पूछा- तुम इस वक्त कहां जा रही हो?

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