कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 15 प्रेमचन्द की कहानियाँ 15प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग
मैंने मुस्कराकर कहा- लेकिन आपने मेरी शिकायत तो नहीं की? क्या बाद को रहम आ गया?
नाक्स ने जवाब दिया- जी, रहम किस मरदूद को आता था। शिकायत न करने का दूसरा ही कारण था, सबेरा होते ही मैंने सबसे पहला काम यही किया कि सीधे कमाण्डिंग अफसर के पास पहुंचा। तुम्हें याद होगा मैं उनके बड़े बेटे राजर्स को घुड़सवारी सिखाया करता था इसलिए वहां जाने में किसी किस्म की झिझक या रुकावट न हुई। जब मैं पहुंचा तो राजर्स ने कहा- आज इतनी जल्दी क्यों किरपिन? अभी तो वक्त नहीं हुआ? आज बहुत खुश नजर आ रहे हो?
मैंने कुर्सी पर बैठते हुए कहा- हां-हां, मालूम है।
मगर तुमने उसे गाली दी थी। मैंने किसी कदर झेंपते हुए कहा- मैंने गाली नहीं दी थी सिर्फ ब्लडी कहा था। सिपाहियों में इस तरह की बदजबानी एक आम बात है मगर एक राजपूत ने मेरी शिकायत कर दी थी। आज मैंने उसे एक संगीन जुर्म में पकड़ लिया है। खुदा ने चाहा तो कल उसका भी कोर्ट-मार्शल होगा। मैंने आज रात को उसे एक औरत से बातें करते देखा है। बिलकुल उस वक्त जब वह ड्यूटी पर था। वह इस बात से इन्कार नहीं कर सकता। इतना कमीना नहीं है।
लुईसा के चेहरे का रंग कुछ का कुछ हो गया। अजीब पागलपन से मेरी तरफ देखकर बोली- तुमने और क्या देखा?
मैंने कहा- जितना मैंने देखा है उतना उस राजपूत को जलील करने के लिए काफी है। जरूर उसकी किसी से आशनाई है और वह औरत हिन्दोस्तानी नहीं, कोई योरोपियन लेडी है। मैं कसम खा सकता हूं, दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े किलकुल उसी तरह बातें कर रहे थे, जैसे प्रेमी-प्रेमिका किया करते हैं।
लुईसा के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं। चौधरी मैं कितना कमीना हूं, इसका अन्दाजा तुम खुद कर सकते हो। मैं चाहता हूं, तुम मुझे कमीना कहो। मुझे धिक्कारो। मैं दरिन्दे-वहशी से भी ज्यादा बेरहम हूं, काले सांप से भी ज्यादा जहरीला हूं। वह खड़ी दीवार की तरफ ताक रही थी कि इसी बीच राजर्स का कोई दोस्त आ गया। वह उसके साथ चला गया। लुईसा मेरे साथ अकेली रह गई तो उसने मेरी ओर प्रार्थना-भरी आंखों से देखकर कहा- किरपिन, तुम उस राजपूत सिपाही की शिकायत मत करना।
मैंने ताज्जुब से पूछा- क्यों?
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