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प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


पौ फटने के वक़्त जब सूर्य देवता के आगमन की तैयारियाँ हो रही थी मगनदास की आँखें खुलीं, रम्भा आटा पीस रही थी। उस शांतिपूर्ण सन्नाटे में चक्की की घुमर-घुमर बहुत सुहानी मालूम होती थी और वह उसके सुर से सुर मिलाकर अपने प्यारे ढंग से गा रही थी-

झुलनियाँ मोरी पानी में गिरी
मैं जानूँ पिया मोको मनैहैं
उलटी मनावन मोको पड़ी
झुलनियाँ मोरी पानी में गिरी।


साल भर गुजर गया। मगनदास की मुहब्बत और रम्भा के सलीके ने मिलकर उस वीरान झोंपड़े को कुंज बाग बना दिया। अब वहाँ गायें थी। फूलों की क्यारियाँ थीं और कई देहाती ढंग के मोढ़े थे। सुख-सुविधा की अनेक चीजें दिखाई पड़ती थीं।

एक रोज सुबह के वक्त मगनदास कहीं जाने के लिए तैयार हो रहा था कि एक सम्भ्रांत व्यक्ति अंग्रेजी पोशाक पहने उसे ढूढंता हुआ आ पहुँचा और उसे देखते ही दौड़कर गले से लिपट गया। मगनदास और वह दोनों एक साथ पढ़ा करते थे। वह अब वकील हो गया। था। मगनदास ने भी अब पहचाना और कुछ झेंपता और कुछ झिझकता उससे गले लिपट गया। बड़ी देर तक दोनों दोस्त बातें करते रहे। बातें क्या थीं घटनाओं और संयोगों की एक लम्बी कहानी थी। कई महीने हुए सेठ लगन का छोटा बच्चा चेचक की नजर हो गया। सेठ जी ने दुख के मारे आत्महत्या कर ली और अब मगनदास सारी जायदाद, कोठी इलाके और मकानों का एकछत्र स्वामी था। सेठानियों में आपसी झगड़े हो रहे थे। कर्मचारियों ने गबन को अपना ढंग बना रक्खा था। बडी सेठानी उसे बुलाने के लिए ख़ुद आने को तैयार थी, मगर वकील साहब ने उन्हें रोका था। तब मगनदास ने मुस्काराकर पूछा- तुम्हें क्योंकर मालूम हुआ कि मैं यहाँ हूँ?

तो वकील साहब ने फ़रमाया- महीने भर से तुम्हारी टोह में हूँ। सेठ मक्खनलाल ने अता-पता बतलाया। तुम दिल्ली पहुँचे और मैंने अपना महीने भर का बिल पेश किया।

रम्भा अधीर हो रही थी कि यह कौन है और इनमें क्या बातें हो रही हैं?

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