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प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


दस बजते-बजते वकील साहब मगनदास से एक हफ़्ते के अन्दर आने का वादा लेकर विदा हुए। उसी वक्त रम्भा आ पहुँची और पूछने लगी- ये कौन थे। इनका तुमसे क्या काम था?

मगनदास ने जवाब दिया- यमराज का दूत।

रम्भा- क्या असगुन बकते हो!

मगन- नहीं नहीं रम्भा, यह असगुन नहीं है, यह सचमुच मेरी मौत का दूत था। मेरी ख़ुशियों के बाग़ को रौंदने वाला। मेरी हरी-भरी खेती को उजाड़ने वाला। रम्भा मैंने तुम्हारे साथ दगा की है, मैंने तुम्हे अपने फरेब के जाल में फँसाया है, मुझे माफ़ करो। मुहब्बत ने मुझसे यह सब करवाया। मैं मगनसिंह ठाकुर नहीं हूँ। मैं सेठ लगनदास का बेटा और सेठ मक्खनलाल का दामाद हूँ। मगनदास को डर था कि रम्भा यह सुनते ही चौंक पड़ेगी ओर शायद उसे ज़ालिम, दगाबाज कहने लगे। मगर उसका ख़्याल ग़लत निकला! रम्भा ने आँखो में आँसू भरकर सिर्फ़ इतना कहा- तो क्या तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे?

मगनदास ने उसे गले लगाकर कहा- हाँ।

रम्भा- क्यों?

मगन- इसलिए कि इन्दिरा बहुत होशियार, सुन्दर और धनी है।

रम्भा- मैं तुम्हें न छोडूँगी। कभी इन्दिरा की लौंडी थी, अब उनकी सौत बनूंगी। तुम जितनी मेरी मुहब्बत करोगे। उतनी इन्दिरा की तो न करोगे, क्यों?

मगनदास इस भोलेपन पर मतवाला हो गया। मुस्कराकर बोला- अब इन्दिरा तुम्हारी लौंडी बनेगी, मगर सुनता हूँ वह बहुत सुन्दर है। कहीं मैं उसकी सूरत पर लुभा न जाऊँ। मर्दों का हाल तुम नहीं जानती, मुझे अपने ही से डर लगता है।

रम्भा ने विश्वासभरी आंखों से देखकर कहा- क्या तुम भी ऐसा करोगे? उँह, जो जी में आये करना, मैं तुम्हें न छोडूंगी। इन्दिरा रानी बने, मैं लौंडी हूंगी, क्या इतने पर भी मुझे छोड़ दोगे?

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