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प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


सुबह हुई तो मगनदास उठा और रम्भा को पुकारने लगा। मगर रम्भा रात ही को अपनी चाची के साथ वहां से कहीं चली गयी थी। मगनदास को उस मकान के दरो-दीवार पर एक मनहूसियत-सी छायी हुई मालूम हुई कि जैसे घर की जान निकल गई हो। वह घबराकर उस कोठरी में गया जहाँ रम्भा रोज चक्की पीसती थी। मगर अफ़सोस, आज चक्की एकदम निश्चल थी। फिर वह कुँए की तरह दौड़ा गया लेकिन ऐसा मालूम हुआ कि कुँए ने उसे निगल जाने के लिए अपना मुँह खोल दिया है। तब वह बच्चों की तरह चीख उठा। वह रोता हुआ फिर उसी झोपड़ी में आया जहाँ कल रात तक प्रेम का वास था। मगर आह, उस वक़्त वह शोक का घर बनी हुई थी। जब जरा आँसू थमे तो उसने घर में चारों तरफ निगाह दौड़ाई। रम्भा की साड़ी अरगनी पर पड़ी हुई थी। एक पिटारी में वह कंगन रक्खा हुआ था जो मगनदास ने उसे दिया था। बर्तन सब रक्खे हुए थे, साफ और सुधरे। मगनदास सोचने लगा- रम्भा तूने रात को कहा था-मैं तुम्हें छोड़ दूंगी। क्या तूने वह बात दिल से कही थी? मैंने तो समझा था, तू दिल्लगी कर रही है। नहीं तो तुझे कलेजे में छिपा लेता। मैं तो तेरे लिए सब कुछ छोड़े बैठा था। तेरा प्रेम मेरे लिए सब कुछ था, आह, मै यों बेचैन हूं, क्या तू बेचैन नहीं है? हाय तू रो रही है। मुझे यकीन है कि तू अब भी लौट आएगी। फिर सजीव कल्पनाओं का एक जमघट उसके सामने आया- वे नाजुक अदाएँ, वे मतवाली आँखें, वे भोली-भाली बातें, वे अपने को भूली हुई-सी मेहरबानियाँ, वह जीवनदायी मुस्कान, वे आशिकों जैसी दिलजोइयाँ, वह प्रेम का नशा, वह हमेशा खिला रहने वाला चेहरा, वह लचक-लचककर कुएँ से पानी लाना, वह इन्तज़ार की सूरत, वह मस्ती से भरी हुई बेचैनी - ये सब तस्वीरें उसकी निगाहों के सामने हैरतनाक बेताबी के साथ फिरने लगी। मगनदास ने एक ठण्डी साँस ली और आँसुओं और दर्द की उमड़ती हुई नदी को मर्दाना जब्त से रोककर उठ खड़ा हुआ। नागपुर जाने का पक्का फैसला हो गया। तकिये के नीच से सन्दूक की कुंजी उठायी तो काग़ज का एक टुकड़ा निकल आया। यह रम्भा की विदा की चिट्ठी थी- प्यारे, मैं बहुत रो रही हूँ, मेरे पैर नहीं उठते, मगर मेरा जाना जरूरी है। तुम्हें जगाऊँगी तो तुम जाने न दोगे। आह कैसे जाऊं, अपने प्यारे पति को कैसे छोडूँ! किस्मत मुझसे यह आनन्द का घर छुड़वा रही है। मुझे बेवफ़ा न कहना, मैं तुमसे फिर कभी मिलूंगी। मैं जानती हूँ कि तुमने मेरे लिए यह सब-कुछ त्याग दिया है। मगर तुम्हारे लिए ज़िन्दगी में बहुत-कुछ उम्मीदे हैं। मैं अपनी मुहब्बत की धुन में तुम्हें उन उम्मीदों से क्यों दूर रक्खूँ! अब तुमसे जुदा होती हूँ। मेरी सुध मत भूलना। मैं तुम्हें हमेशा याद रखूंगी। यह आनन्द के दिन कभी न भूलेंगे। क्या तूम मुझे भूल सकोगे?

तुम्हारी प्यारी रम्भा

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