कहानी संग्रह >> प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16 प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग
'संडास तो है?'
'सबसे पहले वह वहीं जायेंगे।'
'अच्छा, वह सामने कोठरी कैसी है?'
'हाँ, है तो, लेकिन कहीं कोठरी खोलकर देखा तो?
'क्या बहुत डबल आदमी है?'
'तुम जैसे दो को बगल में दबा ले।'
'तो खोल दो कोठरी। वह ज्यों ही अन्दर आयेगा, मैं दरवाजा खोलकर निकल भागूँगा।'
हसीना ने कोठरी खोल दी। मैं अन्दर जा घुसा। दरवाजा फिर बन्द हो गया।
मुझे कोठरी में बन्द करके हसीना ने जाकर सदर दरवाजा खोला और बोली, क्यों किवाड़ तोड़े डालते हो? आ तो रही हूँ।'
मैंने कोठरी के किवाड़ों के दराजों से देखा। आदमी क्या पूरा देव था। अन्दर आते ही बोला, 'तुम सरेशाम से सो गई थीं!'
'हाँ, जरा आँख लग गई थी।'
'मुझे तो ऐसा मालूम हो रहा था कि तुम किसी से बातें कर रही हो।'
'वहम की दवा तो लुकमान के पास भी नहीं।'
'मैंने साफ सुना। कोई-न-कोई था जरूर। तुमने उसे कहीं छिपा रखा है।'
'इन्हीं बातों पर तुमसे मेरा जी जलता है। सारा घर तो पड़ा है, देख क्यों नहीं लेते।'
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