कहानी संग्रह >> प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16 प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग
'मुझे यही बदमाश (मेरी तरफ देखकर) धोखा देकर लाया था।'
'यह क्यों नहीं कहता कि मजे उड़ाने आया था। दूसरों पर इल्जाम रखकर अपनी जान बचाना चाहता है, सुअर? ले, तू भी क्या समझेगा कि किसके पाले पड़ा था।'
यह कहकर उसने उसी तेज छुरे से उन साहब की नाक काट ली। मैं मौका पाकर बेतहाशा भागा, लेकिन हाय-हाय की आवाज मेरे कानों में आ रही थी। इसके बाद उन दोनों में कैसी छनी, हसीना के सिर पर क्या आफत आई, इसकी मुझे कुछ खबर नहीं। मैं तब से बीसों बार सदर आ चुका हूँ, पर उधर भूलकर भी नहीं गया। यह पत्थर फेंकनेवाले हजरत वही हैं, जिनकी नाक कटी थी। आज न-जाने कहाँ से दिखाई पड़ गये और मेरी शामत आई कि उन्हें सलाम कर बैठा। आपने उनकी नाक की तरफ शायद खयाल नहीं किया।'
मुझे अब खयाल आया कि उस आदमी की नाक कुछ चिपटी थी। बोला, 'हाँ, नाक कुछ चिपटी तो थी। मगर आपने उस गरीब को बुरा चरका दिया।'
'और करता ही क्या?'
'जरूर दबा लेते; मगर चोर का दिल आधा होता है। उस वक्त अपनी-अपनी पड़ी थी कि मुकाबला करने की सूझती। कहीं उस रमझल्ले में धर लिया जाता, तो आबरू अलग जाती और नौकरी से अलग हाथ धोता। मगर अब इस आदमी से होशियार रहना पड़ेगा।'
इतने में चौक आ गया और हम दोनों ने अपनी-अपनी राह ली।
7. दाराशिकोह का दरबार
शहजादा दाराशिकोह शाहजहाँ के बड़े बेटे थे और बाह्य तथा आन्तरिक गुणों से परिपूर्ण। यद्यपि वे थे तो वली अहद मगर साहिबे किरान सानी1 ने उनकी बुद्धिमत्ता, विशेषता, गुणों और कलात्मकता को देखकर व्यावहारिक रूप में पूरे साम्राज्य की व्यवस्था उन्हीं को सौंप रखी थी। वे अन्य शहजादों की तरह सम्बद्ध प्रान्तों की सूबेदारी पर नियुक्त न किए जाते, वरन् राजधानी में ही उपस्थित रहते और अपने सहयोगियों की सहायता से साम्राज्य का कार्यभार संभालते। खेद का विषय है कि यद्यपि उनको योग्य, अनुभवी, गर्वोन्नत, आज्ञाकारी बनाने के लिए व्यावहारिकता की पाठशाला में शिक्षा दी गई, लेकिन देश की जनता को उनकी ओर से कोई स्मरणीय लाभ नहीं हुआ। इतिहासकारों का कथन है कि यदि औरंगजेब के स्थान पर शहजादा दाराशिकोह को गद्दी मिलती तो हिन्दुस्तान एक बहुत शक्तिशाली संयुक्त साम्राज्य हो जाता। यह कथन हालाँकि किसी सीमा तक एक मानवीय गुण पर आधारित है, क्योंकि मृत्यु के पश्चात् प्रायः लोग मनुष्यों की प्रशंसा किया करते हैं, फिर भी यह देखना बहुत कठिन नहीं है कि इसमें सच्चाई की झलक भी पाई जाती है। (1. ‘साहिबे किरान’ तैमूर की उपाधि थी। उसकी छठी पीढ़ी के बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी। मुगल बादशाहों में से शाहजहाँ के लिये सर्वप्रथम ‘साहिबे किरान सानी’ का विरुद प्रयुक्त हुआ और उसके पश्चात् शाह शुजा, मुराद बख्श, शाह आलम प्रथम, जहाँदार शाह, फर्रूखसियर, मुहम्मद शाह द्वितीय और अकबर द्वितीय के लिए भी इसी विरुद का प्रयोग किये जाने के प्रमाण मिलते हैं। )
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