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प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


इस संक्षिप्त से वाक्य ने उपस्थित महानुभावों के मुँह का रंग उड़ा दिया। हरेक व्यक्ति सन्नाटे में आ गया और कई मिनट तक किसी को बोलने का भी साहस न हुआ। अन्ततः हेनरी बोजे ने कहा, ‘यह समाचार सुनकर हमें अत्यधिक शोक हुआ, हम सच्चे हृदय से साम्राज्य के पक्षधर हैं।’

पादरी जोजरेट : ‘मगर समझ में नहीं आता कि असफलता क्यों हुई। गोले उतारने वाले, सेना को व्यवस्थित करने वाले तो प्रायः फिरंगी थे जिनके सिरों पर हजरत मसीह की कृपा थी। उनका असफल रहना समझ में नहीं आता।’

यह कहकर उन्होंने गले से मसीह की छोटी सी तस्वीर निकाली और बड़े सम्मान के साथ चूमी। अब डाक्टर बर्नियर की बारी आई। पहले उन्होंने दर्शकों को उस दृष्टि से देखा जो सत्यनिष्ठ भी थी और सत्यवक्ता भी। इसके पश्चात् बोले, ‘महानुभावो! सच पूछिए तो इस अभियान की सफलता में मुझे पहले से ही सन्देह था। शहजादा मुहीउद्दीन इसके भाग्यविधाता बनने के योग्य नहीं थे। इसलिए नहीं कि उनमें यह योग्यता नहीं है, बल्कि केवल इसलिए कि वे अपने वैमनस्य को दबा नहीं सकते। मुझे विश्वास है कि इस असफलता का कारण राजा जगत सिंह का अलग रहना है।’

इसके पश्चात् कई मिनट तक सन्नाटा रहा।

अन्ततः शहजादे साहब ने चुप्पी को यूँ तोड़ा, ‘महानुभावो! मैं इस वाद-विवाद में नहीं पड़ता कि इस असफलता का वास्तविक कारण क्या है। इस बात की छानबीन करना उचित नहीं है। आप भली प्रकार जानते हैं कि ऐसा करना बुद्धिमानी के प्रतिकूल होगा।’

शहजादे साहब ने ये शब्द रुक-रुककर कहे। प्रतीत होता था कि इस समय ये मन में उभरने वाले विचारों से परेशान हो रहे हैं, जैसे कोई आन्तरिक दुविधा में पड़ा हो। मन पहले कहता हो अच्छा है ऐसा कर लेकिन फिर दिशा बदल जाता हो। अपनी बात समाप्त करके शहजादे ने उपस्थित लोगों को सार्थक दृष्टि से देखा। जो कुछ वाणी न कह सकी थी, आँखों ने कह दिया।

पादरी जोजरेट ने शहजादे को उत्तर देते हुए कहा, ‘जहाँपनाह! धृष्टता क्षमा हो। गुलाम की तुच्छ राय तो यह है कि इस असफलता के कारणों पर प्रत्येक दृष्टि से विचार कर लें, भले ही वे कितने ही अरुचिकर क्यों न हों, ताकि भविष्य के लिये उन महत्त्वपूर्ण कारणों की रोकथाम भी कर ली जाये। असफलता हमें गलतियों से परिचित करा देती है, इसलिए मेरी दृष्टि में सफलताओं का इतना महत्त्व नहीं है जितना कि असफलताओं का। निस्संदेह सांसारिक अनुभव का असफलता से बढ़कर और कोई शिक्षक नहीं होता।’

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