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प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


शहजादा दाराशिकोह केवल समाज सुधारक नहीं था, उसके सिर पर ज्ञान तथा प्रतिष्ठा की पगड़ी भी बँधी हुई थी। उसने भारत की सभी प्रमुख भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर लिया था, विशेषकर संस्कृत से तो उसे प्यार सा हो गया था। घंटों हौज के किनारे बैठा पतंजलि या गौतम का दर्शन पढ़ता, चिन्तन करता और रोता। एशियाई भाषाओं के अतिरिक्त उसने यूरोप की भी कई भाषाओं में निपुणता प्राप्त कर ली थी। लातिनी, यूनानी तथा ईरानी भाषाओं पर उसकी अच्छी पकड़ थी। फ्रांसीसी, अंग्रेजी तथा जर्मन जैसी आधुनिक भाषाएँ, जिनका अभी तक इतना विकास नहीं हुआ था कि उनकी विशेषता व सौन्दर्य दूसरे देशों को आकर्षित करता, उसे प्रभावित नहीं कर सकीं, फिर भी उन भाषाओं से वह नितान्त अनभिज्ञ नहीं था। थोड़ी बहुत बातचीत समझ लेता और टूटे-फूटे शब्दों में अपने विचार भी प्रकट कर लेता था। वह इतने बड़े देश पर शासन करता था और उसके साथ-साथ अपनी व्यक्तिगत शिक्षा के लिये भी ऐसा प्रयास करता था; यह सोचकर आश्चर्य होता है कि उसकी क्षमताएँ कैसी थीं और मस्तिष्क कैसा।

दाराशिकोह ने वह गलती न की जो अकबर ने की थी। अकबर के सलाहकार या तो हिन्दू थे या मुसलमान और इसका स्वाभाविक परिणाम यह था कि दोनों में निरन्तर तू-तू मैं-मैं चला करती थी। यदि अकबर जैसा दृढ़ संकल्पी शासक न होता तो उस वर्ग को बिल्कुल भी वश में नहीं रख सकता था जिसमें मानसिंह, अबुल फजल जैसे मनोमस्तिष्क के लोग थे। स्पष्ट है कि ऐसे सलाहकारों की सम्मति कभी निरर्थक नहीं होगी, हरेक अपनी जाति की ओर ही खींचेगा। इस भय से शहजादे ने अपने सलाहकार अंग्रेजों से लिए थे क्योंकि उनसे अनुचित पक्षपात की आशंका नहीं हो सकती थी। पहले अपने दरबारियों से हरेक बात की पूछताछ करता और तब अपने फिरंगी सलाहकारों से राय लेकर निर्णय करता।

तीसरे पहर का समय है। शहजादा दाराशिकोह का दरबारे खास सजा है। अच्छी और नेक सलाह देने वाले सलाहकार पद के अनुरूप सजी-धजी पोशाकों में उपस्थित हैं। ठीक मध्य में एक जड़ाऊ सिंहासन है जिस पर शहजादे साहब विराजमान हैं। उनके चेहरे से चिन्तामग्न तथा विचारमग्न होना स्पष्ट होता है। हाथ में एक शाही फरमान है जिसे वे रह-रहकर व्याकुल दृष्टि से देखते हैं और फिर कुछ सोचने लगते हैं। सिंहासन से सटी हुई एक रत्नजटित कुर्सी पर हेनरी बोजे बैठा हुआ है, जो शहजादे का मनपसंद सलाहकार है और उसकी सलाह का बड़ा सम्मान किया जाता है। हेनरी बोजे के बराबर में दूसरी जड़ाऊ कुर्सी पर मालपेका बैठा हुआ है। सिंहासन के बाँईं ओर फ्रांसीसी पर्यटक बर्नियर एक कुर्सी पर बैठा हुआ कुछ सोच रहा है और उसके बराबर में एक दूसरी कुर्सी पर पुर्तगाली राजदूत जोजरेट बैठा है। पूरे दरबार में आश्चर्यजनक मौन पसरा हुआ है। चारों ओर के दरवाजे बंद हैं। सलाहकारों की आँखें बार-बार शहजादे की ओर उठती हैं लेकिन उन्हें चुप देखकर फिर नीची हो जाती हैं। थोड़ी देर बाद शहजादे साहब ने कहा, ‘महानुभावो! शायद आप लोगों को कंधार अभियान की तबाही का समाचार मिला हो।’

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