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प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


भगवान् ने भारत को एशिया में ज्ञान तथा सभ्यता का खजांची बनाया है और अब कुछ दिनों से उसे अमूल्य मसीही रत्न भी सौंपे जाने लगे हैं। बस, उसका कर्त्तव्य है कि अन्य एशियाई देशों को अपनी सम्पदा से यश प्रदान करे, दिल खोलकर उस खजाने को लुटाए, विशाल हृदयता दिखाये, दानशीलता का प्रमाण दे। यदि इस अकूत सम्पदा से वह स्वयं लाभ उठाएगा तो स्वार्थी कहलाएगा, आने वाली पीढ़ियाँ उस पर कंजूसी का आरोप लगाएँगी। यदि वह संस्कृति का प्याला स्वयं पियेगा और दूसरे देशों को उससे आनन्दित नहीं होने देगा तो उस पर अपना ही पेट भरने का आरोप लगाया जाएगा। बस, उसका कर्त्तव्य है कि कंधार को यह प्याला पिलाए और मन में समझे कि वह इस कार्य को करने के लिए ईश्वर द्वारा नियुक्त किया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कंधार यह प्याला सरलता से नहीं पियेगा, मगर इसका कारण यह है कि वह इसके आनन्द को नहीं जानता, इसके लाभों से अनभिज्ञ है। अब भारत का कर्त्तव्य है कि उसे इसका आनन्द दे और इसका लाभ उसके मन में जमा दे।’

पादरी जोजरेट ने अपना भाषण समाप्त किया ही था कि खानदानी शहजादे ने सिंहासन से उतरकर उनसे हाथ मिलाया। हर्ष के आवेग से डाक्टर बर्नियर साहब का मुँह खिल उठा, मगर हेनरी बोजे साहब का चेहरा बुझ गया क्योंकि उन पर स्पष्टतः प्रकट हो गया कि अब मेरी सलाह स्वीकार किए जाने की तनिक भी आशा शेष नहीं रही। पादरी साहब का क्या पूछना! वे तो समझते थे आज जग जीत लिया। और क्यों न समझते! अब तक किसी ने इस दृष्टि से कंधार अभियान पर विचार नहीं किया था। यह पादरी साहब की ही सूझबूझ है।

इस भाषण के पश्चात् कई मिनट तक सन्नाटा रहा। अन्ततः शहजादे साहब ने कहा, ‘महानुभावो! मैं आपका हृदय से आभारी हूँ कि आपने अपने बुद्धिमत्तापूर्ण वक्तव्यों से मुझे प्रफुल्लित किया। जिस समय मैंने इस दीवाने खास में पाँव रखा था, मैं कंधार अभियान का धुर विरोधी था। दो निरन्तर पराजयों ने मेरा साहस तोड़ दिया था और स्वाभाविक रूप से मेरे मन में यह विचार उत्पन्न होता था कि ईश्वर ने इस प्रकार हमारे भ्रामक उत्साह का दण्ड दिया है। मगर डाक्टर बर्नियर और पादरी जोजरेट के प्रभावशाली वक्तव्यों ने मेरे विचारों की कायापलट कर दी और अब मेरा यह निश्चय है कि यथासम्भव कंधार को हाथों से न निकलने दूँगा। मैं कंधार को हिन्दुस्तान का एक प्रान्त बना दूँगा और यह कोई नयी बात नहीं है। संस्कृत किताबें प्रमाण हैं कि प्राचीन काल में जब आर्यों की तूती बोल रही थी, तब कंधार भारत का एक प्रान्त था, दोनों देशों के शासकों में वैवाहिक सम्बन्ध थे। राजा धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी कंधार की राजपुत्री थी। दोनों बहनों में अब तनिक मनोमालिन्य हो गया है, लेकिन मैं उन्हें पुनः गले मिलाऊँगा।’

इस वक्तव्य के पश्चात् सभा विसर्जित हुई।

समाप्त

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