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प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9777
आईएसबीएन :9781613015148

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग


डाक्टर बर्नियर जिस समय अपने स्थान पर बैठे, सभाजनों ने प्रशंसा की बौछार कर दी। विशेषकर शहजादे साहब को उनका भाषण बहुत अच्छा लगा, तत्काल सिंहासन से उतरकर उनसे हाथ मिलाया। हेनरी बोजे साहब मन ही मन में कटे जा रहे थे। वे समझते थे कि डाक्टर बर्नियर का सम्मान मेरा परोक्ष अपमान है क्योंकि डाक्टर साहब उनसे बहुत कम मतभेद किया करते थे, और अगर करते भी थे तो मुँह की खाते थे। मगर इस समय मैदान उन्हीं के हाथ रहा। कुछ मिनटों के मौन के बाद भी जब हेनरी बोजे साहब अपने स्थान से न हिले तो पादरी जोजरेट ने यूँ मोती बिखराए, ‘महानुभावो! मेरी जानकारी में सभ्य राष्ट्रों की विजयश्री से कभी यह आशय नहीं लिया जाना चाहिये कि अपने देश का ही फायदा सोचें, अपने देश को ही दौलत से मालामाल तथा निहाल करें और केवल अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए अन्य देशों की गरदन पर आज्ञापालन का जुआ रख दें। बल्कि इन विजयों से विजित देशों का लाभ दृष्टि में रहना चाहिए। यूनान की विजयों ने यूनान का केवल यश ही नहीं बढ़ाया बल्कि उसके विजित राष्ट्रों में ज्ञान व सभ्यता, उद्योग व व्यवसाय तथा सत्कलाओं की आधारशिला रखी। सारे यूरोप ने ही नहीं बल्कि सारे संसार ने यूनान के ही सांस्कृतिक विद्यालय में शिक्षा पाई है। यूनान ने संसार को सबसे पहले राजनीति के सिद्धान्त सिखाये। दर्शन और तर्कशास्त्र, पिंगल व रसायनशास्त्र, चिकित्साशास्त्र व संगीतशास्त्र सब इसी यूनानी मस्तिष्क के खिलौने हैं। आज योरुप में यह आँखें चुँधिया देने वाला प्रकाश कहाँ होता यदि यूनान ने अपनी संस्कृति की प्रज्ज्वलित मशाल से उस घटाटोप अंधेरे को दूर न कर दिया होता। यूनान का इतिहास उन बलिदानों से भरा पड़ा है जो यूनानियों ने दूसरों को सभ्य बनाने के लिए किये। इटली की विजयों ने संसार पर वह उपकार किया जिसे वे अनन्त काल तक भूल नहीं सकते। जिसने सभ्य अनीश्वरवादियों को आदमी बनाया, जिसने संसार की मुक्ति का द्वार खोल दिया। महानुभावो! वह कौन सा उपकार है? वह यह है कि इटली ने मसीह के मिशन को सारे संसार में फैलाया, मसीही प्रकाश से असत्य का अंधकार दूर किया। इटली से ही आध्यात्मिक प्यास बुझाने वाले पानी का स्रोत फूटा।

जहाँपनाह! कौन कहता है कि इटली का नामोनिशान मिट गया? कौन कहता है कि इटली की सत्ता विनष्ट हो गई? आज का संसार एक बड़ी इटली है और संसार के समस्त राज्य इटली का नाम रोशन कर रहे हैं। यदि सन् 200 ई. में इटली की बादशाहत उन्नति की पराकाष्ठा पर पहुँची हुई थी तो आज चौथे आकाश तक पहुँची हुई है। हरेक देश की संस्कृति, नैतिकता तथा व्यवहार, सत्ता के सिद्धान्त जो आज संसार में प्रचलित हैं, इटली की टकसाल में ही ढलकर निकले हैं। यहाँ तक कि हम पर यूनान का जो प्रभाव पड़ा है, वह भी इटली के कारण ही है। इटली की भाषा लैटिन ही आज संसार के सभ्य देशों की मान्य भाषा है।

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