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प्रेमचन्द की कहानियाँ 18

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9779
आईएसबीएन :9781613015162

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अठारहवाँ भाग


झूरी प्रातःकाल सोकर उठा, तो देखा दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदनों में आधा-आधा गराँव लटक रहा हैं। घुटने तक पाँव कीचड़ से भरे हैं और दोनों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा हैं।

झूरी बैलों के देखकर स्नेह से गदगद् हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। प्रेमालिंगन और चुम्बन का वह दृश्य बड़ा मनोहर था।

घर और गाँव के लड़के जमा हो गये और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे। गाँव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्वपूर्ण थी। बाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों को अभिनन्दन पत्र देना चाहिए। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी।

एक बालक ने कहा- ऐसे बैल किसी के पास न होंगे।

दूसरे ने समर्थन किया- इतनी दूर से दोनों अकेले चले आये।

तीसरा बोला- बैल नहीं हैं वे, उस जनम के आदमी हैं। इसका प्रतिवाद करने का किसी को साहस नहीं हुआ।

झूरी की स्त्री ने बैलों को द्वार पर देखा तो जल उठी। बोली- कैसे नमकहराम बैल हैं कि एक दिन वहाँ काम न किया, भाग खड़े हुए।

झूरी अपने बैलों पर यह आक्षेप न सुन सका- नमकहराम क्यों हैं? चारा-दाना न दिया होगा, तो क्या करते?

स्त्री ने रोब के साथ कहा- बस, तुम्हीं ही तो बैलों को खिलाना जानते हो और तो सभी पानी पिला-पिलाकर रखते है।

झूरी ने चिढ़ाया- चारा मिलता तो क्यों भागते?

स्त्री चिढ़ी- भागे इसलिए कि वे लोग तुम जैसे बुद्धुओं की तरह बैलों को सहलाते नहीं। खिलाते है तो रगड़कर जोतते भी हैं। ये ठहरे काम-चोर, भाग निकले, अब देखूँ? कहाँ से खली और चोकर मिलता हैं। सूखे-भूसे के सिवा कुछ न दूँगी, खायें चाहे मरें।

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