कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 18 प्रेमचन्द की कहानियाँ 18प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अठारहवाँ भाग
सहसा बालिका चिल्लायी- दोनों फूफावाले बैल भागे जा रहे हैं। ओ दादा ! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौड़ो।
गया हड़बड़ाकर बाहर निकला और बैलों को पकड़ने चला। वे दोनों भागे। गया ने पीछा किया। और भी तेज हुए। गया ने शोर मचाया। फिर गाँव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया। सीधे दौड़ते चले गये। यहाँ तक कि मार्ग का ज्ञान न रहा। जिस परिचित मार्ग से आये थे, उसका यहाँ पता न था। नये-नये गाँव मिलने लगे। तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए।
हीरा ने कहा- मालूम होता हैं, राह भूल गये।
'तुम भी तो बेताहाशा भागे। वहीं मार गिराना था।'
'उसे मार गिराते तो, दुनिया क्या कहती? वह अपना धर्म छोड़ दे, लेकिन हम अपना धर्म क्यों छोड़े?'
दोनों भूख से व्याकुल हो रहे थे। खेत में मटर खड़ी थी। चरने लगे। रह-रहकर आहट ले लेते थे, कोई आता जाता तो नहीं हैं।
जब पेट भर गया, दोनों ने आजादी का अनुभव किया तो मस्त होकर उछलने-कूदने लगे। पहले दोनों ने डकार ली। फिर सींग मिलाये और एक दूसरे को ठेलने लगे। मोती ने हीरा को कई कदम पीछे हटा दिया, यहाँ तक कि वह खाई में गिर गया। तब उसे भी क्रोध आया। संभलकर उठा और फिर मोती से भिड़ गया। मोती ने देखा -- खेल में झगड़ा हुआ चाहता हैं तो किनारे हट गया।
अरे ! यह क्या? कोई साँड़ डौकता चला आ रहा हैं। हाँ, साँड ही है। वह सामने आ पहुँचा। दोनो मित्र बगलें झाँक रहे हैं। साँड पूरा हाथी हैं। उससे भिडना जान से हाथ धोना है, लेकिन न भिडने पर भी जान बचती नहीं नजर आती। इन्हीं की तरफ आ भी रहा हैं। कितनी भयंकर सूरत है।
मोती ने मूक भाषा में कहा- बुरे फँसे। जान बचेगी? कोई उपाय सोचो।
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