कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 18 प्रेमचन्द की कहानियाँ 18प्रेमचंद
|
10 पाठकों को प्रिय 247 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अठारहवाँ भाग
हीरा ने चिन्तित स्वर में कहा- अपने घमंड में भूला हुआ हैं। आरजू-विनती न सुनेगा।
'भाग क्यों न चलें?'
'भागना कायरता है।'
'तो फिर यहीं मरो। बन्दा तो नौ-दो-ग्यारह होता है।'
'और जो दौड़ाये?'
'तो फिर कोई उपाय सोचो जल्द।'
'उपाय यही है कि उस पर दोनों जने एक साथ चोट करें? मैं आगे से रगेदता हूँ तुम पीछे से रगेदो, दोहरी मार पड़ेगी तो भाग खड़ा होगा। मेरी ओर झपटे, तुम बगल से उसके पेट में सींग घुसेड देना। जान जोखिम है, पर दूसरा उपाय नहीं है।'
दोनों मित्र जान हथेली पर लेकर लपके। साँड को भी संगठित शत्रुओं से लड़ने का तजरबा न था। वह तो एक शत्रु से मल्लयुद्ध करने का आदी था। ज्योंही हीरा पर झपटा, मोती ने पीछे से दौड़ाया। साँड उसकी तरफ मुडा, तो हीरा ने रगेदा। साँड चाहता था कि एक एक करके दोनों को गिरा ले, पर ये दोनों भी उस्ताद थे। उसे अवसर न देते थे। एक बार साँड झल्लाकर हीरा का अन्त कर देने ले लिए चला कि मोती ने बगल से आकर पेट में सींग भोंक दी। साँड क्रोध में आकर पीछे फिरा तो हीरा ने दूसरे पहलू में सींग चुभा दिया। आखिर बेचारा जख्मी होकर भागा और दोनो मित्रों ने दूर तक उसका पीछा किया। यहाँ तक की साँड बेदम होकर गिर पड़ा। तब दोनों ने उसे छोड़ दिया।
दोनों मित्र विजय के नशे में झूमते चले जाते थे।
मोती ने अपनी सांकेतिक भाषा मे कहा- मेरा जी तो चाहता था कि बच्चा को मार ही डालूँ।
हीरा ने तिरस्कार किया- गिरे हुए बैरी पर सींग न चलाना चाहिये।
|