कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 18 प्रेमचन्द की कहानियाँ 18प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अठारहवाँ भाग
'तो क्या तुम जीते रहोगे?'
'मेरा कौन बैठा है, जो रोयेगा?'
'यहाँ भी वही हाल है भाई, क्वार में जिस कुतिया से प्रेम किया था, उसने बेवफाई की और अब कल्लू के साथ है। खैरियत यही हुई कि अपने बच्चे लेती गयी, नहीं तो मेरी जान गाढ़े में पड़ जाती। पाँच-पाँच बच्चों को कौन पालता?'
एक क्षण के बाद भूख ने एक दूसरी युक्ति सोच निकाली। 'मालकिन हमें खोज रही होंगी, क्या टामी?'
'और क्या? बाबूजी और सुरेश खा चुके होंगे। कहार ने उनकी थाली से जूठन निकाल लिया होगा और हमें पुकार रहा होगा।'
'बाबूजी और सुरेश दोनों की थालियों में घी खूब रहता है और वह मीठी-मीठी चीज हाँ मलाई।'
'सब-का-सब घूरे पर डाल दिया जायगा।'
'देखें, हमें खोजने कोई आता है?'
'खोजने कौन आयेगा; क्या कोई पुरोहित हो? एक बार 'मंगल-मंगल' होगा और बस, थाली परनाले में उँड़ेल दी जायेगी।'
'अच्छा, तो चलो चलें। मगर मैं छिपा रहूँगा, अगर किसी ने मेरा नाम लेकर न पुकारा; तो मैं लौट आऊँगा। यह समझ लो।'
दोनों वहाँ से निकले और आकर महेशनाथ के द्वार पर अँधेरे में दबककर खड़े हो गये; मगर टामी को सब्र कहाँ? वह धीरे से अन्दर घुस गया। देखा, महेशनाथ और सुरेश थाली पर बैठ गये हैं। बरोठे में धीरे से बैठ गया, मगर डर रहा था कि कोई डण्डा न मार दे। नौकर में बातचीत हो रही थी। एक ने कहा, 'आज मँगलवा नहीं दिखायी देता। मालकिन ने डाँटा था, इससे भागा है साइत।'
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