कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 19 प्रेमचन्द की कहानियाँ 19प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग
तार में लिखा था- मानी गाड़ी से कूद पड़ी। उसकी लाश लालपुर से तीन मील पर पायी गयी। मैं लालपुर में हूँ, तुरंत आओ।
एक मित्र ने कहा- किसी शत्रु ने झूठी खबर न भेज दी हो?
दूसरे मित्र बोले- हाँ, कभी-कभी लोग ऐसी शरारतें करते हैं।
इंद्रनाथ ने शून्य नेत्रों से उनकी ओर देखा, पर मुँह से कुछ बोले नहीं।
कई मिनट तीनों आदमी निर्वाक् निस्पंद बैठे रहे। एकाएक इंद्रनाथ खड़े हो गये और बोले- मैं इस गाड़ी से जाऊँगा।
बंबई से नौ बजे रात को गाड़ी छूटती थी। दोनों मित्रों ने चटपट बिस्तर आदि बांधकर तैयार कर दिया। एक ने बिस्तर उठाया, दूसरे ने ट्रंक। इंद्रनाथ ने चटपट कपड़े पहने और स्टेशन चले। निराशा आगे थी, आशा रोती हुई पीछे।
एक सप्ताह गुजर गया था। लाला वंशीधर दफ्तर से आकर द्वार पर बैठे ही थे कि इंद्रनाथ ने आकर प्रणाम किया। वंशीधर उसे देखकर चौंक पड़े, उसके अनपेक्षित आगमन पर नहीं, उसकी विकृत दशा पर, मानो वीतराग शोक सामने खड़ा हो, मानो कोई हृदय से निकली हुई आह मूर्तिमान् हो गयी हो।
वंशीधर ने पूछा- तुम तो बंबई चले गये थे न?
इंद्रनाथ ने जवाब दिया- जी हाँ, आज ही आया हूँ।
वंशीधर ने तीखे स्वर में कहा- गोकुल को तो तुम ले बीते!
इंद्रनाथ ने अपनी अंगूठी की ओर ताकते हुए कहा- वह मेरे घर पर हैं।
वंशीधर के उदास मुख पर हर्ष का प्रकाश दौड़ गया। बोले- तो यहाँ क्यों नहीं आये? तुमसे कहाँ उसकी भेंट हुई? क्या बंबई चला गया था?
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