कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 19 प्रेमचन्द की कहानियाँ 19प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग
'जी नहीं, कल मैं गाड़ी से उतरा तो स्टेशन पर मिल गये।'
'तो जाकर लिवा लाओ न, जो किया अच्छा किया।'
यह कहते हुए वह घर में दौड़े। एक क्षण में गोकुल की माता ने उसे अंदर बुलाया।
वह अंदर गया तो माता ने उसे सिर से पाँव तक देखा- तुम बीमार थे क्या भैया? चेहरा क्यों इतना उतरा है?
गोकुल की माता ने पानी का लोटा रखकर कहा- हाथ-मुँह धो डालो बेटा, गोकुल है तो अच्छी तरह? कहाँ रहा इतने दिन! तब से सैकड़ों मन्नतें मान डालीं। आया क्यों नहीं?
इंद्रनाथ ने हाथ-मुँह धोते हुए कहा- मैंने तो कहा था, चलो, लेकिन डर के मारे नहीं आते।
'और था कहाँ इतने दिन?'
'कहते थे, देहातों में घूमता रहा।'
'तो क्या तुम अकेले बंबई से आये हो?'
'जी नहीं, अम्माँ भी आयी हैं।'
गोकुल की माता ने कुछ सकुचाकर पूछा- मानी तो अच्छी तरह है?
इंद्रनाथ ने हँसकर कहा- जी हाँ, अब वह बड़े सुख से हैं। संसार के बंधनों से छूट गयी।
माता ने अविश्वास करके कहा- चल, नटखट कहीं का! बेचारी को कोस रहा है, मगर इतनी जल्दी बंबई से लौट क्यों आये?
इंद्रनाथ ने मुस्कराते हुए कहा- क्या करता! माताजी का तार बंबई में मिला कि मानी ने गाड़ी से कूदकर प्राण दे दिये। वह लालपुर में पड़ी हुई थी, दौड़ा हुआ आया। वहीं दाह-क्रिया की। आज घर चला आया। अब मेरा अपराध क्षमा कीजिए।
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