कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 19 प्रेमचन्द की कहानियाँ 19प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग
रामबली– मैं तो हाजिर ही हूँ, लेकिन मैंने भी कसम खायी है कि कभी गाँठ के पैसे खर्च करके न पीऊँगा।
मुंशी– अजी जब तक मेरे दम में दम है, तुम जितना चाहो पीयो, गम क्या है।
रामबली– लेकिन आप न रहे तब? ऐसा सज्जन फिर कहाँ पाऊँगा।
मुंशी– अजी तब देखी जायगी, मैं आज मरा थोड़े ही जाता हूँ।
रामबली– जिन्दगी का कोई ऐतबार नहीं, आप मुझसे पहले जरूर ही मरेंगे, तो उस वक्त मुझे कौन रोज पिलायेगा। तब तो छोड़ भी न सकूँगा। इससे बेहतर यही है कि अभी से फिक्र करूँ।
मुंशी– यार ऐसी बातें करके दिल न छोटा करो। आओ बैठ जाओ, एक ही गिलास ले लेना।
रामबली– मुख्तार साहब, अब ज्यादा मजबूर न कीजिये। जब ईदू और झिनकू जैसे लतियों ने कसम खा ली जो औरतों के गहने बेच-बेच पी गये और निरे मूर्ख हैं, तो मैं इतना निर्लज्ज नहीं हूँ कि इसका गुलाम बना रहूँ। स्वामी जी ने मेरा सर्वनाश होने से बचाया। उनकी आज्ञा मैं किसी तरह नहीं टाल सकता। यह कह कर रामबली भी विदा हो गया।
मुंशी जी ने प्याला मुँह से लगाया, लेकिन दूसरा प्याला भरने के पहले उनकी मद्यातुरता गायब हो गयी थी। जीवन में यह पहला अवसर था कि उन्हें एकांत में बैठ कर दवा की भाँति शराब पीनी पड़ी। पहले तो सहवासियों पर झुँझलाये। दग़ाबाजों को मैंने सैकड़ों रुपये खिला दिये होंगे, लेकिन आज ज़रा-सी बात पर सब के सब फिरंट हो गये। अब मैं भूत की भाँति अकेला पड़ा हुआ हूँ, कोई हँसने-बोलने वाला नहीं। यह तो सोहबत की चीज़ है, जो सोहबत का आनन्द ही न रहा तो पी कर खाट पर रहने से क्या फायदा?
मेरा आज कितना अपमान हुआ! जब मैं गली में घुसा हूँ तो सैकड़ों ही आदमी मेरी ओर आग्नेय दृष्टि से ताक रहे थे। शराब लेकर लौटा हूँ, तब तो लोगों का वश चलता तो मेरी बोटियाँ नोच खाते। थानेदार न होता तो घर तक आना मुश्किल था। यह अपमान और लोकनिन्दा किसलिए। इसलिए कि घड़ी भर बैठ कर मुँह कड़वा करूँ और कलेजा जलाऊँ। कोई हँसी चुहल करने वाला तक नहीं।
लोग इसे कितनी त्याज्य-वस्तु समझते हैं; इसका अनुभव मुझे आज ही हुआ, नहीं तो एक संन्यासी के जरा से इशारे पर बरसों के लती पियक्कड़ यों मेरी अवहेलना न करते। बात यही है कि अंतःकरण से सभी इसे निषिद्ध समझते हैं। जब मेरे साथ के ग्वाले, एक्केवान, और कहार तक इसे त्याग करते हैं तो क्या मैं उनसे भी गया गुजरा हूँ?
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